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सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला अब काफी हद तक कम हो पाएंगे दहेज के मामले

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई है। झूठे केसों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हुए सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को हिदायत दी है कि दहेज उत्पीड़न के केस में आरोपी की गिरफ्तारी जरूरी होने पर ही हो। गिरफ्तारी करते वक्त पुलिस को वजह बतानी होगी। कोर्ट ने दहेज केस में पुलिस के पास तुरंत गिरफ्तारी की शक्ति को भ्रष्टाचार का बड़ा स्रोत माना है। कोर्ट के आदेश के बाद अब दहेज केस में किसी को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को पहले केस डायरी में वजह दर्ज करनी होगी। जिनकी मजिस्ट्रेट समीक्षा करेंगे। कोर्ट ने सभी राज्यों को आदेश पर अमल करने को कहा है। अमल नहीं करने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई व अदालत की अवमानना की कार्रवाई होगी।
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कुछ सालों में दहेज विरोधी कानून के नाम पर परेशानी के मामले बढ़े हैं।  अनुच्छेद 498अ संज्ञय और गैरजमानती अपराध है।  पति व उनके रिश्तेदारों की परेशान करने का सबसे सरल तरीका है। पतियों के दादा-दादी, विदेश में रह रही बहनों की गिरफ्तारी भी देखी। दो सदस्यीय बेंच ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो का हवाला दिया।
अनुच्छेद 498 अ के तहत 2012 में 2 लाख लोगों की गिरफ्तारी हुई यह वर्ष 2011 के मुकाबले 9.4 फीसदी ज्यादा है। 2012 में जितनी गिरफ्तारी हुई उनमें लगभग एक चौथाई महिलाएं थीं।
धारा 498 अ में चार्जशीट की दर 93.6 फीसदी, सजा दर 15 फीसदी। फिलहाल तीन लाख 72 हजार 706 केस की सुनवाई चल रही है। 3 लाख 17 हजार मुकदमों में आरोपियों की रिहाई की संभावना है। 2013 में 1, 18866 मामले दर्ज हुए हैं। सजा दर पंद्रह फीसदी। 1, 97762 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। 65 पुरुषों ने आत्महत्या की है। चार्जशीट दर 72 फीसदी।
यह कहा कोर्ट ने: इन आंकड़ों को देखते हुए लगता है कि इस कानून का इस्तेमाल पति और उनके रिश्तेदारों को परेशान करने के लिए हथियार के तौर पर किया जा रहा है। ऐसा किया जाना गलत है।  पुलिस अब तक ब्रिटिश सोच से बाहर नहीं मजिस्ट्रेट के सामने पहले ठोस वजह बताए पुलिस
दहेज के मामलों में राज्य सरकारें पुलिस को दिशा निर्देश जारी करें गिरफ्तारी न हो:
न्यायाधीशों ने कहा, किसी व्यक्ति के खिलाफ अपराध करने का आरोप लगाने के आधार पर ही फौरी तौर पर कोई गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए। दूरदर्शी और बुद्धिमान पुलिस अधिकारी के लिए उचित होगा कि आरोपों की सच्चाई की थोड़ी बहुत जांच के बाद उचित तरीके से संतुष्ट हुए बगैर कोई गिरफ्तारी नहीं की जाए। अपराध के आंकड़ों का जिक्र करते हुए न्यायालय ने कहा कि 2012 में धारा 498-क के तहत अपराध के लिए 1,97,762 व्यक्ति गिरफ्तार किए गए और इस प्रावधान के तहत गिरफ्तार व्यक्तियों में से करीब एक-चौथाई पतियों की मां और बहन जैसी महिलाएं थीं, जिन्हें गिरफ्तारी के जाल में लिया गया।

अपराध गैर जमानती इसीलिए ब्लैकमेल की तरह किया जा रहा है इस्तेमाल

परेशान करने का सबसे आसान तरीका पति और उसके रिश्तेदारों को इस प्रावधान के तहत गिरफ्तार कराना है। अनेक मामलों में पति के अशक्त दादा-दादी, विदेश में दशकों से रहने वाली उनकी बहनों को भी गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी व्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित और उसे अपमानित करती है और हमेशा के लिए धब्बा लगाती है और कोई भी गिरफ्तारी सिर्फ इसलिए नहीं की जानी चाहिए कि अपराध गैर जमानती और संज्ञेय है। गिरफ्तार करने का अधिकार एक बात है और इसके इस्तेमाल को न्यायोचित ठहराना दूसरी बात है। गिरफ्तार के अधिकार के साथ ही पुलिस अधिकारी ऐसा करने को कारणों के साथ न्यायोचित ठहराने योग्य होना चाहिए।

पुलिस अधिकारी को कारण बताना होगा गिरफ़्तारी का

सुप्रीम कोर्टने कहा कि पुलिस अधिकारी को दहेज मामले में गिरफ्तार करने की जरूरत के बारे में मजिस्ट्रेट के समक्ष कारण और सामग्री पेश करनी होगी। न्यायाधीशों ने कहा, पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा स्त्री को प्रताड़ित करने की समस्या पर अंकुश पाने के इरादे से भारतीय दंड संहिता की धारा 498-अ शामिल की गई थी। धारा 498-अ को संज्ञेय और गैर जमानती अपराध होने के कारण प्रावधानों में इसे संदिग्ध स्थान प्राप्त है, जिसे असंतुष्ट पत्निया कवच की बजाय हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं। इससे महिलाएं ससुराल जनों को प्रताड़ित करती हैं।

केस को आरोपी का खून व विवाह का रिश्ता जरूरी

उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि दहेज हत्या के मामले में किसी व्यक्ति पर मुकदमा चलाने के लिए उसे उस समय तक रिश्तेदार नहीं माना जा सकता जब तक पति से उसका खून, विवाह या गोद लिए जाने का रिश्ता नहीं हो। शीर्ष अदालत ने साथ ही स्पष्ट किया कि उसका तात्पर्य यह नहीं है कि ऐसे व्यक्ति पर आत्महत्या के लिए उकसाने जैसे आरोप में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। कोर्टने कहा कि उन्हें इसमें कोई संदेह नहीं है धारा 304 (बी) (दहेज हत्या) में पति के रिश्तेदार शब्द का आशय उन व्यक्तियों से है जिनका खून, विवाह या गोद लिए जाने के रिश्ते से संबंधित है। कोर्ट ने दहेज हत्या के मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्टके फैसले के खिलाफ पंजाब की अपील पर यह व्यवस्था दी।
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