क्या आपके पास महंगी गाडी है यदि हाँ तो आपकी जेब पर लगने वाली है मोती चपत जाने कैसे लगेगी?
www.nvrthub.com न्यूज़: डीजल की दोहरी कीमत तय करने पर पूर्व की संप्रग सरकार ने बातें तो बहुत कीं, लेकिन वह जमीनी तौर पर कुछ खास नहीं कर पाई। अब मोदी सरकार ने यह फैसला किया है कि वह महंगी गाड़ियों को सस्ता डीजल देना बंद करेगी। इसके लिए उचित तकनीक की खोज की जा रही है, जिससे पेट्रोल पंप पर एसयूवी सरीखे वाहनों को ज्यादा कीमत पर डीजल खरीदना पड़ेगा।
पूर्व की संप्रग सरकार की तरफ से गठित दो उच्चस्तरीय समितियों (सी रंगराजन समिति और किरीट पारीख समिति) ने डीजल की दोहरी मूल्य व्यवस्था को लागू करने की सिफारिश की थी। संप्रग ने अपने कार्यकाल के अंत में थोक ग्राहकों को पूरी कीमत पर डीजल देने की नीति भी लागू की थी, लेकिन जमीनी तौर पर इसका खास फर्क नहीं पड़ा है। थोक ग्राहक की स्पष्ट परिभाषा नहीं होने की वजह से यह नीति असफल हो चुकी है। एक वर्ष पहले डीजल का 19 फीसद उपभोग थोक ग्राहक करते थे। नई नीति के लागू होने के बाद अब डीजल के महज 8-9 फीसद थोक ग्राहक बचे हैं। पिछले महीने सरकार को सौंपी गई पारीख समिति की रिपोर्ट में संदेह जताया गया है कि नई नीति के बाद थोक ग्राहकों ने खुदरा के तौर पर डीजल खरीदना शुरू कर दिया है।इस बारे में पूछने पर पेट्रोलियम मंत्री प्रधान ने बताया, ‘इस बात पर गहन चर्चा कराए जाने की जरूरत है कि अमीरों को सब्सिडी वाला डीजल मिलना चाहिए। हम उपभोक्ताओं के वर्गीकरण के मुद्दे पर व्यापक बहस कराना चाहते हैं, जो सिर्फ समितियों के सदस्यों के बीच तक ही सीमित न रहे। हम यह भी देखेंगे कि क्या तकनीकी के माध्यम से एक वर्ग के लिए अलग मूल्य व्यवस्था लागू करना संभव है। मेरे ख्याल से यह संभव है। तकनीकी का उपयोग सरकार पेट्रोलियम क्षेत्र में मिलावट को रोकने के लिए भी करेगी।’जनवरी, 2013 में संप्रग सरकार ने डीजल की कीमत में हर महीने पचास पैसे की बढ़ोतरी करने का फैसला किया था। मोदी सरकार भी इस नीति को आगे बढ़ा रही है। लेकिन डीजल स ब्सिडी सरकार के लिए एक बड़ी मुश्किल बनी हुई है। अभी तेल कंपनियों को डीजल पर लगभग 3.40 रुपये प्रति लीटर का घाटा हो रहा है। देश में डीजल खपत का लगभग 19 फीसद महंगे वाहन पी जाते हैं। पिछले दो वर्षो में डीजल इंजन वाले एसयूवी की बिक्री में औसतन 20 फीसद की वृद्धि हुई है।
पूर्व की संप्रग सरकार की तरफ से गठित दो उच्चस्तरीय समितियों (सी रंगराजन समिति और किरीट पारीख समिति) ने डीजल की दोहरी मूल्य व्यवस्था को लागू करने की सिफारिश की थी। संप्रग ने अपने कार्यकाल के अंत में थोक ग्राहकों को पूरी कीमत पर डीजल देने की नीति भी लागू की थी, लेकिन जमीनी तौर पर इसका खास फर्क नहीं पड़ा है। थोक ग्राहक की स्पष्ट परिभाषा नहीं होने की वजह से यह नीति असफल हो चुकी है। एक वर्ष पहले डीजल का 19 फीसद उपभोग थोक ग्राहक करते थे। नई नीति के लागू होने के बाद अब डीजल के महज 8-9 फीसद थोक ग्राहक बचे हैं। पिछले महीने सरकार को सौंपी गई पारीख समिति की रिपोर्ट में संदेह जताया गया है कि नई नीति के बाद थोक ग्राहकों ने खुदरा के तौर पर डीजल खरीदना शुरू कर दिया है।इस बारे में पूछने पर पेट्रोलियम मंत्री प्रधान ने बताया, ‘इस बात पर गहन चर्चा कराए जाने की जरूरत है कि अमीरों को सब्सिडी वाला डीजल मिलना चाहिए। हम उपभोक्ताओं के वर्गीकरण के मुद्दे पर व्यापक बहस कराना चाहते हैं, जो सिर्फ समितियों के सदस्यों के बीच तक ही सीमित न रहे। हम यह भी देखेंगे कि क्या तकनीकी के माध्यम से एक वर्ग के लिए अलग मूल्य व्यवस्था लागू करना संभव है। मेरे ख्याल से यह संभव है। तकनीकी का उपयोग सरकार पेट्रोलियम क्षेत्र में मिलावट को रोकने के लिए भी करेगी।’जनवरी, 2013 में संप्रग सरकार ने डीजल की कीमत में हर महीने पचास पैसे की बढ़ोतरी करने का फैसला किया था। मोदी सरकार भी इस नीति को आगे बढ़ा रही है। लेकिन डीजल स ब्सिडी सरकार के लिए एक बड़ी मुश्किल बनी हुई है। अभी तेल कंपनियों को डीजल पर लगभग 3.40 रुपये प्रति लीटर का घाटा हो रहा है। देश में डीजल खपत का लगभग 19 फीसद महंगे वाहन पी जाते हैं। पिछले दो वर्षो में डीजल इंजन वाले एसयूवी की बिक्री में औसतन 20 फीसद की वृद्धि हुई है।
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