शेयर मार्किट में कैसे करें निवेश, कमाइए पैसा जी भर के यदि आपमे है कुछ सिखने की इच्छा
यह तो सभी को मालूम है कि किसी भी बाजार में अगर मांग के मुकाबले आपूर्ति ज्यादा है तो कीमत गिरेगी। अगर इसका उल्टा आपूर्ति कम है तो कीमत बढ़ेगी। लेकिन शेयर बाजार और आलू-प्याज मार्केट में एक महत्वपूर्ण अंतर भी है। आप आलू-प्याज को एक उपभोक्ता यानी एंड यूजर के तौर पर खरीदते हैं, न कि एक ट्रेडर के तौर पर। (हमारे जो पाठक आलू-प्याज के ट्रेडर हैं, वे इस उदाहरण को खरीद-फरोख्त की जाने वाली किसी दूसरी वस्तु मसलन जमीन, फ्लैट या सोने-चांदी के संदर्भ में समझ सकते हैं) लेकिन जब आप कोई शेयर खरीदते हैं तो आप यूजर नहीं बल्कि ट्रेडर हो जाते हैं क्योंकि शेयर खरीदने का एक ही मकसद होता है, उसे बेचकर मुनाफा कमाना।
दरअसल यहीं शेयर बाजार दूसरे बाजारों के मुकाबले अलग और अनोखा है। यहां हर सौदे में दो ट्रेडर आमने-सामने होते हैं। वे एक दूसरे को न जानते हैं, न पहचानते हैं फिर भी एक बेचता है तो दूसरा खरीदता है। इसे एक और सरल उदाहरण से समझिए। माना कि आपने 520 रुपए के भाव पर टाटा स्टील के 100 शेयर खरीदे। जाहिर सी बात है कि ये शेयर किसी ने बेचे तभी आप इन्हें खरीद पाए। अब जरा सोचिए कि जब आपको लगा कि 520 रुपए में टाटा स्टील का शेयर खरीद लेना चाहिए क्योंकि इसकी कीमत में उछाल आने के आसार हैं। ठीक तभी किसी दूसरे शख्स इस नतीजे पर पहुंचा कि उसके डि-मैट अकाउंट में टाटा स्टील के जो शेयर हैं, उन्हें बेच देना चाहिए क्योंकि इसकी कीमत गिरनेवाली है। उसने बेचने का ऑर्डर दिया, आपने खरीदने का ऑर्डर दिया और ट्रेड हो गया। इस प्रकार एक दूसरे के धुर विपरीत सोच वाले दो ट्रेडर्स जब स्टॉक एक्सचेंज के प्लेटफॉर्म एक समय में आमने-सामने होते हैं तभी कोई सौदा होता है। इसी को शेयर बाजार का ‘जीरो सम गेम’ कहते हैं। यानी टाटा स्टील के जो 100 शेयर कल तक उस शख्स के पास थे, वो अब आपके पास हैं, अगर आने वाले दिनों में वे शेयर चढ़ते हैं तो इसका मतलब है कि आपकी ट्रेडिंग सफल रही, अगर यह शेयर गिरता है, बेचने वाले का आकलन सही साबित होगा।
संवेदनशील बाजार में कैसे समझें कि कौन शेयर गिरेगा और कौन चढ़ेगा
अब आपके मन में यह सवाल उठ सकता है कि इतनी कशमकश के बीच कैसे तय किया जाए कि कौन सा शेयर उठ सकता है और कौन सा गिरने वाला है। इस सवाल का कोई सीधा जवाब न है, न हो सकता है। क्योंकि शेयर बाजार एक जटिल, व्यापक और संवेदनशील मशीन की तरह काम करता है। इसे प्रभावित करने वाले तत्वों की कतार बहुत लंबी है। माइक्रो से लेकर मैक्रो तक यानी किसी छोटी सी कंपनी के वार्षिक नतीजों से लेकर आम चुनाव के परिणाम तक कोई भी चीज स्टॉक की कीमत में बड़ा उलटफेर कर सकती है। विनिवेश से लेकर अधिग्रहण तक कोई भी खबर किसी शेयर की कीमत में तूफान खड़ा कर सकती है। कई बार तो कोई बड़ी वजह नहीं होती है फिर भी शेयर बाजार में भूचाल आ जाता है। जैसा कि रेल बजट वाले दिन हुआ। रेल बजट ने बाजार को निराश तो कतई नहीं किया। फिर भी शेयर बाजार में दस महीनों की सबसे भयानक गिरावट दर्ज की गई। निफ्टी 160 प्वाइंट फिसल गया। इसकी दो बड़ी वजहें मानी गईं- पहली-मुनाफावसूली हुई, दूसरी-बाजार बहुत चढ़ गया था, इसलिए उसमें करेक्शन हुआ, बड़े बड़े शेयर औंधे मुंह गिरे। दिलचस्प है कि इतनी बड़ी गिरावट डाउनट्रेंड मार्केट में नहीं बल्कि अपट्रेंड मार्केट में आई। कहने का मतलब यह कि शेयर बाजार को किसी एक फॉर्मूले से साधा नहीं जा सकता है। हो सकता है कि आपने जिस फैक्टर को कम करके आंका, वही सबसे पावरफुल साबित हो।
समय के साथ बदलें रणनीति
शेयर मार्किट एक ऐसा युद्ध है जिसमें समय के साथ रणभूमि और रणनीति दोनों बदलनी पड़ती है। यहां कुछ भी फिक्स्ड नहीं है। आप ट्रेडिंग टर्मिनल को देखेंगे तो महसूस करेंगे कि हर पल बाजार की हलचल के हिसाब से भावों में उसी तरह उतार-चढ़ाव होता है, जैसे सागर की लहरों में। इसके बावजूद कुछ लोग दावा करते हैं कि उनके पास शेयरों की अचूक भविष्यवाणी करने की शक्तिहै। लेकिन ऐसी भविष्यवाणियों पर आंखमूंद कर भरोसा करना खुद को ठगने जैसा है।
टिप्सों पर आंखमूंद कर न करें यकीन
फीस लेकर टिप्स देने वाली एजेंसियां इस संवेदनशील शेयर बाजार के बारे में यह दावा करती हैं कि उसके ट्रेडिंग टिप्स कभी फेल नहीं होते हैं, तो वे एक तरह से भोले-भाले निवेशकों को झांसा दे रही होती हैं। क्योंकि अनिश्चितता तो शेयर बाजार की धड़कन है। इसलिए नए निवेशकों को सलो शेयर बाजार में फायदे और नुकसान का गणित समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर इस बाजार में कारोबार होता कैसे है? बुनियादी तौर पर देखा जाए तो शेयर बाजार और आलू-प्याज के मार्केट में कहने के लिए कोई खास फर्क नहीं है। दोनों मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर चलते हैं। लेकिन शेयर बाजार की प्रकृति अन्य बाजारों से अलग है। कैसे, आइए समझते हैं।
दरअसल यहीं शेयर बाजार दूसरे बाजारों के मुकाबले अलग और अनोखा है। यहां हर सौदे में दो ट्रेडर आमने-सामने होते हैं। वे एक दूसरे को न जानते हैं, न पहचानते हैं फिर भी एक बेचता है तो दूसरा खरीदता है। इसे एक और सरल उदाहरण से समझिए। माना कि आपने 520 रुपए के भाव पर टाटा स्टील के 100 शेयर खरीदे। जाहिर सी बात है कि ये शेयर किसी ने बेचे तभी आप इन्हें खरीद पाए। अब जरा सोचिए कि जब आपको लगा कि 520 रुपए में टाटा स्टील का शेयर खरीद लेना चाहिए क्योंकि इसकी कीमत में उछाल आने के आसार हैं। ठीक तभी किसी दूसरे शख्स इस नतीजे पर पहुंचा कि उसके डि-मैट अकाउंट में टाटा स्टील के जो शेयर हैं, उन्हें बेच देना चाहिए क्योंकि इसकी कीमत गिरनेवाली है। उसने बेचने का ऑर्डर दिया, आपने खरीदने का ऑर्डर दिया और ट्रेड हो गया। इस प्रकार एक दूसरे के धुर विपरीत सोच वाले दो ट्रेडर्स जब स्टॉक एक्सचेंज के प्लेटफॉर्म एक समय में आमने-सामने होते हैं तभी कोई सौदा होता है। इसी को शेयर बाजार का ‘जीरो सम गेम’ कहते हैं। यानी टाटा स्टील के जो 100 शेयर कल तक उस शख्स के पास थे, वो अब आपके पास हैं, अगर आने वाले दिनों में वे शेयर चढ़ते हैं तो इसका मतलब है कि आपकी ट्रेडिंग सफल रही, अगर यह शेयर गिरता है, बेचने वाले का आकलन सही साबित होगा।
संवेदनशील बाजार में कैसे समझें कि कौन शेयर गिरेगा और कौन चढ़ेगा
अब आपके मन में यह सवाल उठ सकता है कि इतनी कशमकश के बीच कैसे तय किया जाए कि कौन सा शेयर उठ सकता है और कौन सा गिरने वाला है। इस सवाल का कोई सीधा जवाब न है, न हो सकता है। क्योंकि शेयर बाजार एक जटिल, व्यापक और संवेदनशील मशीन की तरह काम करता है। इसे प्रभावित करने वाले तत्वों की कतार बहुत लंबी है। माइक्रो से लेकर मैक्रो तक यानी किसी छोटी सी कंपनी के वार्षिक नतीजों से लेकर आम चुनाव के परिणाम तक कोई भी चीज स्टॉक की कीमत में बड़ा उलटफेर कर सकती है। विनिवेश से लेकर अधिग्रहण तक कोई भी खबर किसी शेयर की कीमत में तूफान खड़ा कर सकती है। कई बार तो कोई बड़ी वजह नहीं होती है फिर भी शेयर बाजार में भूचाल आ जाता है। जैसा कि रेल बजट वाले दिन हुआ। रेल बजट ने बाजार को निराश तो कतई नहीं किया। फिर भी शेयर बाजार में दस महीनों की सबसे भयानक गिरावट दर्ज की गई। निफ्टी 160 प्वाइंट फिसल गया। इसकी दो बड़ी वजहें मानी गईं- पहली-मुनाफावसूली हुई, दूसरी-बाजार बहुत चढ़ गया था, इसलिए उसमें करेक्शन हुआ, बड़े बड़े शेयर औंधे मुंह गिरे। दिलचस्प है कि इतनी बड़ी गिरावट डाउनट्रेंड मार्केट में नहीं बल्कि अपट्रेंड मार्केट में आई। कहने का मतलब यह कि शेयर बाजार को किसी एक फॉर्मूले से साधा नहीं जा सकता है। हो सकता है कि आपने जिस फैक्टर को कम करके आंका, वही सबसे पावरफुल साबित हो।
समय के साथ बदलें रणनीति
शेयर मार्किट एक ऐसा युद्ध है जिसमें समय के साथ रणभूमि और रणनीति दोनों बदलनी पड़ती है। यहां कुछ भी फिक्स्ड नहीं है। आप ट्रेडिंग टर्मिनल को देखेंगे तो महसूस करेंगे कि हर पल बाजार की हलचल के हिसाब से भावों में उसी तरह उतार-चढ़ाव होता है, जैसे सागर की लहरों में। इसके बावजूद कुछ लोग दावा करते हैं कि उनके पास शेयरों की अचूक भविष्यवाणी करने की शक्तिहै। लेकिन ऐसी भविष्यवाणियों पर आंखमूंद कर भरोसा करना खुद को ठगने जैसा है।
टिप्सों पर आंखमूंद कर न करें यकीन
फीस लेकर टिप्स देने वाली एजेंसियां इस संवेदनशील शेयर बाजार के बारे में यह दावा करती हैं कि उसके ट्रेडिंग टिप्स कभी फेल नहीं होते हैं, तो वे एक तरह से भोले-भाले निवेशकों को झांसा दे रही होती हैं। क्योंकि अनिश्चितता तो शेयर बाजार की धड़कन है। इसलिए नए निवेशकों को सलो शेयर बाजार में फायदे और नुकसान का गणित समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर इस बाजार में कारोबार होता कैसे है? बुनियादी तौर पर देखा जाए तो शेयर बाजार और आलू-प्याज के मार्केट में कहने के लिए कोई खास फर्क नहीं है। दोनों मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर चलते हैं। लेकिन शेयर बाजार की प्रकृति अन्य बाजारों से अलग है। कैसे, आइए समझते हैं।
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