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अनुभूति का अभाव होता है बच्चो में:छह माह का शिशु ऊंची कुर्सी से नीचे चम्मच फेंकने के बाद फर्श पर नहीं देखता है। वह अनुमान लगाता है, चम्मच इस दुनिया में नहीं है। बहुत छोटे शिशु अलग होने की पीड़ा का अनुभव बड़े बच्चों के समान नहीं करते हैं।

छोटे बच्चे लालची, हिंसक, स्वार्थी, उव्दिग्न और निर्मम होते हैं। वे अपने साथियों से लगातार लड़ते हैं। अगर बदले में उन्हें पीटा जाए तो वे दर्द से चीखते हैं। वे चाहते हैं कि उनकी प्रशंसा हो, सभी जरुरतें पूरी की जाएं लेकिन उन्हें अनुशासित और दंडित किया जाए। यह सब आला दर्जे की मनोविकृति है। इसमें आत्मप्रशंसा का भाव भी है। लेकिन, अपने अस्तित्व के लिए बच्चों का ऐसा करना जरूरी है। मनोवैज्ञानिक इस तरह के व्यवहार के कारणों को समझ चुके हैं। यह भी जानते हैं क्यों कुछ लोग इससे उबर नहीं पाते हैं।
psychology of child kids
कंसास स्टेट यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक मार्क बार्नेट कहते हैं, बच्चों का अपनी जरुरतें पूरी करने के लिए स्वार्थी और आत्म प्रशंसा से प्रेरित होना विकास क्रम की अनिवार्यता है। 1914 में सिगमंड फ्रायड ने एक निबंध में लिखा था,बच्चे के जीवन की शुरुआती अवस्था को स्वयं के प्रति मोह की प्रारंभिक स्थिति कहा जा सकता है। बच्चे लालच या चालाकी से नहीं बल्कि जीवित रहने की आवश्यकता से ऐसा व्यवहार करते हैं। बालकों के अस्तित्व रक्षा से प्रेरित बर्ताव को आत्ममोह कहना अनुचित है। इसका अर्थ यह नहीं है कि आत्म मोह का संकेत देने वाला व्यवहार आगे जाकर व्यक्तित्व दोष में नहीं बदलेगा।

दूसरों की भावनाओं को समझने की बच्चों की प्रवृत्ति भविष्य में आत्म प्रशंसा से पीड़ित होने का कारण बन सकती है। बच्चे का दिमाग दूसरों की भावनाओं को महसूस नहीं कर पाता है। जो व्यक्ति या वस्तुएं बालक के सुनने की क्षमता या नजर के दायरे से बाहर हो जाते हैं, उन्हें वह भूल जाता है। सामान्यत: छह माह के बाद बच्चे वस्तुओं या व्यक्तियों को पहचानने लगते हैं। उस समय उन्हें दूसरों के दुख या पीड़ा का अहसास होने लगता है। बार्नेट कहते हैं, छोटा बच्चा अपनी मां की उसी तरह फिक्र करता है जैसी वह अपनी चाहता है। वह अपना खिलौना या पसंद की कोई चीज देकर यह दर्शाता है। दूसरी तरफ कुछ वैज्ञानिकों ने छोटे शिशुओं में अन्य लोगों की भावनाओं को समझने के लक्षण देखे हैं।
इओवा यूनिवर्सिटी की मनोवैज्ञानिक ग्रेजिना कोचंस्का व्दारा 2009 में की गई स्टडी से छोटे बच्चों में पछतावे की भावना के संकेत मिले हैं। दो वर्ष की आयु के 57 बच्चों को एक-एक खिलौना दिया गया। उन्हें बताया गया कि यह खास खिलौना है। यह प्रयोग में शामिल महिला का है जिसे वह अपने बच्चे को देगी। खिलौना ऐसा बनाया गया था कि बच्चे के हाथ लगाते ही टूट जाए। टूटने पर महिला कहती ओह मेरा खिलौना। शोधकर्ताओं ने पाया कि खिलौना टूटने पर कुछ बच्चे विचलित दिखाई दिए। कुछ बच्चों पर कोई असर नहीं पड़ा। अधिकतर बच्चों में अपने प्रति मोह की भावना धीरे-धीरे खत्म हो जाती है। लेकिन, कुछ लोगों में ऐसा वयस्क अवस्था तक जारी रहता है।

छोटे बच्चेलालची, हिंसक, स्वार्थी, उव्दिग्न और निर्मम होते हैं। वे अपने साथियों से लगातार लड़ते हैं। अगर बदले में उन्हें पीटा जाए तो वे दर्द से चीखते हैं। वे चाहते हैं कि उनकी प्रशंसा हो, सभी जरुरतें पूरी की जाएं लेकिन उन्हें अनुशासित और दंडित किया जाए। यह सब आला दर्जे की मनोविकृति है। इसमें आत्मप्रशंसा का भाव भी है। लेकिन, अपने अस्तित्व के लिए बच्चों का ऐसा करना जरूरी है। मनोवैज्ञानिक इस तरह के व्यवहार के कारणों को समझ चुके हैं। यह भी जानते हैं क्यों कुछ लोग इससे उबर नहीं पाते हैं।
कंसास स्टेट यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक मार्क बार्नेट कहते हैं, बच्चों का अपनी जरुरतें पूरी करने के लिए स्वार्थी और आत्म प्रशंसा से प्रेरित होना विकास क्रम की अनिवार्यता है। 1914 में सिगमंड फ्रायड ने एक निबंध में लिखा था,बच्चे के जीवन की शुरुआती अवस्था को स्वयं के प्रति मोह की प्रारंभिक स्थिति कहा जा सकता है। बच्चे लालच या चालाकी से नहीं बल्कि जीवित रहने की आवश्यकता से ऐसा व्यवहार करते हैं। बालकों के अस्तित्व रक्षा से प्रेरित बर्ताव को आत्ममोह कहना अनुचित है। इसका अर्थ यह नहीं है कि आत्म मोह का संकेत देने वाला व्यवहार आगे जाकर व्यक्तित्व दोष में नहीं बदलेगा।

दूसरों की भावनाओं को समझने की बच्चों की प्रवृत्ति भविष्य में आत्म प्रशंसा से पीड़ित होने का कारण बन सकती है। बच्चे का दिमाग दूसरों की भावनाओं को महसूस नहीं कर पाता है। जो व्यक्ति या वस्तुएं बालक के सुनने की क्षमता या नजर के दायरे से बाहर हो जाते हैं, उन्हं वह भूल जाता है। सामान्यत: छह माह के बाद बच्चे वस्तुओं या व्यक्तियों को पहचानने लगते हैं। उस समय उन्हें दूसरों के दुख या पीड़ा का अहसास होने लगता है। बार्नेट कहते हैं, छोटा बच्चा अपनी मां की उसी तरह फिक्र करता है जैसी वह अपनी चाहता है। वह अपना खिलौना या पसंद की कोई चीज देकर यह दर्शाता है। दूसरी तरफ कुछ वैज्ञानिकों ने छोटे शिशुओं में अन्य लोगों की भावनाओं को समझने के लक्षण देखे हैं।

इओवा यूनिवर्सिटी की मनोवैज्ञानिक ग्रेजिना कोचंस्का व्दारा 2009 में की गई स्टडी से छोटे बच्चों में पछतावे की भावना के संकेत मिले हैं। दो वर्ष की आयु के 57 बच्चों को एक-एक खिलौना दिया गया। उन्हें बताया गया कि यह खास खिलौना है। यह प्रयोग में शामिल महिला का है जिसे वह अपने बच्चे को देगी। खिलौना ऐसा बनाया गया था कि बच्चे के हाथ लगाते ही टूट जाए। टूटने पर महिला कहती ओह मेरा खिलौना। शोधकर्ताओं ने पाया कि खिलौना टूटने पर कुछ बच्चे विचलित दिखाई दिए। कुछ बच्चों पर कोई असर नहीं पड़ा। अधिकतर बच्चों में अपने प्रति मोह की भावना धीरे-धीरे खत्म हो जाती है। लेकिन, कुछ लोगों में ऐसा वयस्क अवस्था तक जारी रहता है।
 
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