इंटरनेट पर अश्लील सामग्री मुहैया कराने वाली इंटरनेट साइट की बढ़ती हुई संख्या पर चिंता व्यक्त करते हुये शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र सरकार से कहा कि "इस समस्या का समाधान खोजा जाये"। इससे पहले सरकार ने इस स्थिति पर असहाय होने जैसी स्थिति का जिक्र करते हुये कहा कि यदि हम एक साइट अवरूद्ध करते हैं तो दूसरी आ जाती है। प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि "मानव मस्तिष्क बहुत उर्वरक है और प्रौद्योगिकी कानून से भी तेज दौड़ती है। कानून को प्रौद्योगिकी के साथ गति मिलाकर चलना होगा"। इससे पहले, अतिरिक्त सालिसीटर जनरल एल नागेश्वर राव ने कहा कि जब एक साइट अवरूद्ध की जाती है तो उसी तरह की कई साइट सामने आ जाती हैं। उन्होंने कहा कि इन साइट को नियंत्रित करने के लिये विदेशों से संचालित सर्वरों को भारत लाने के लिये कदम उठाये जा रहे हैं। इस पर न्यायालय ने कहा कि इस समस्या का कुछ न कुछ समाधान तो खोजना ही होगा।
न्यायालय ने इन्दौर स्थित कमलेश वासवानी की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस याचिका में कहा गया है कि हालांकि अश्लील वीडियो देखना अपराध नहीं है लेकिन अश्लील वेबसाइट्स पर प्रतिबंध लगना चाहिए क्योंकि महिलाओं के प्रति अपराध का यह एक बड़ा कारण हैं। वकील विजय पंजवानी के जरिये दायर इस याचिका में कहा गया है कि इंटरनेट कानून के अभाव में लोग अश्लील वीडियो देखने के लिये प्रेरित होते हैं और इस समय बाजार में 20 करोड़ से अधिक अश्लील वीडियो की क्लीपिंग नि:शुल्क उपलब्ध हैं। न्यायालय ने केन्द्र सरकार को निर्देश दिया कि याचिका का विवरण सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 88 के तहत गठित सलाहकार समिति के समक्ष भी पेश किया जाये ताकि वह इस समस्या पर नियंत्रण के लिये कुछ सुझाव दे सके। न्यायालय ने पिछले साल 18 नवंबर को दूरसंचार विभाग को भी नोटिस जारी कर इस तरह की वेबसाइट को अवरूद्ध करने के उपायों के बारे में जवाब मांगा था।