साधना, सेवा और त्याग से कोई भी महान बन सकता है
एक बार एक राजकुमारी को रास्ते में एक कुष्ठ रोगी मिला। रोगी ने कहा- राजकुमारी, मेरी प्रार्थना है कि तुम मेरी सेवा कर कुछ क्षणों के लिए मुझे सुख दो। पहले तो राजकुमारी चौंकी, फिर बोली- मेरी शादी एक राजकुमार से तय हुई है। पहले मैं उनसे आज्ञा लूंगी। किसी को दिया वचन तोड़ना नहीं चाहिए। रोगी राजी हो गया। राजकुमारी की शादी जिस राजकुमार से तय थी, उसे एक दिन उसने उस कुष्ठरोगी की बात बता दी। राजकुमार बोला- ठीक है, तुम जा सकती हो। वचन निभाना सभी का कर्तव्य है।
जाओ, तुम उसकी सेवा कर आओ। राजकुमारी चल पड़ी। अंधेरी रात में जुगनू धरती पर प्रकाश फैलाने की कोशिश कर रहे थे। रास्ते में उसे एक चोर मिला। राजकुमारी को आभूषणों से लदा देखकर वह खुद पर काबू न रख सका। भारी आवाज में बोला- राजकुमारी ठहरो। गहने उतारकर मुझे दे दो। वह बोली- देखो, मुझे एक जरूरी काम है। थोड़ी देर के बाद आकर खुद गहने दे दूंगी। चोर मान गया। वह आगे बढ़ी। कुछ दूर चलने के बाद उसे एक बाघ मिला। राजकुमारी को देख कर उसकी भूख जाग गई। उसने कहा- मुझे बड़ी भूख लगी है। क्या तुम्हें खाकर अपनी भूख मिटा लूं। राजकुमारी ने कहा- अभी मुझे जरूरी काम है। मैं लौट कर आ जाऊं, फिर तुम मुझे खा लेना। राजकुमारी कुष्ठरोगी के पास पहुंची। बोली- आपने सेवा करने को कहा था, इसलिए मैं आ गई हूं। उसे सामने देखकर रोगी सहसा चौंक गया- तुम मनुष्य नहीं देवी हो। भला कभी सुख विलास की सरिता में रहते और नई नई ब्याहता कोई राजकुमारी कुष्ठरोगी की सेवा करने इतनी रात को आ सकती है/ नहीं...नहीं, तुम मुझे क्षमा कर दो।
यह सुनकर राजकुमारी चल दी। वह बाघ के पास पहुंची- लो, अब मिटाओ अपनी भूख। बाघ के मुंह से निकला- भला कोई इंसान किसी पशु के पास इस प्रकार कहने आ सकता है/ नहीं, मैं तुम्हें नहीं खा सकता। तुम जरूर कोई देवी हो। अब वह चोर के पास गई- आप मेरे वस्त्र और भूषण ले सकते हैं। चोर हैरान- ऐसा भी कभी हुआ है, जो एक बार हाथ से निकल जाय वह खुद आकर कहे/ नहीं, मैं तुम्हारे गहने नहीं लूंगा।
मनुष्य के जीवन में त्याग, सेवा और साधना बड़ी चीजें हैं। इनसे कोई भी महान बन सकता है। दूसरे के लिए कोई कुछ छोड़ने को तैयार हो जाए तो उसे त्याग कहते हैं। सेवा तब है जब वह निस्वार्थ भाव से की जाए। साधना का अर्थ है सफलता के लिए कोशिश। किंतु आध्यात्मिक साधना में मनुष्य एकाग्र होकर ईश्वर के साथ एकात्म होने की कोशिश करता है।
जाओ, तुम उसकी सेवा कर आओ। राजकुमारी चल पड़ी। अंधेरी रात में जुगनू धरती पर प्रकाश फैलाने की कोशिश कर रहे थे। रास्ते में उसे एक चोर मिला। राजकुमारी को आभूषणों से लदा देखकर वह खुद पर काबू न रख सका। भारी आवाज में बोला- राजकुमारी ठहरो। गहने उतारकर मुझे दे दो। वह बोली- देखो, मुझे एक जरूरी काम है। थोड़ी देर के बाद आकर खुद गहने दे दूंगी। चोर मान गया। वह आगे बढ़ी। कुछ दूर चलने के बाद उसे एक बाघ मिला। राजकुमारी को देख कर उसकी भूख जाग गई। उसने कहा- मुझे बड़ी भूख लगी है। क्या तुम्हें खाकर अपनी भूख मिटा लूं। राजकुमारी ने कहा- अभी मुझे जरूरी काम है। मैं लौट कर आ जाऊं, फिर तुम मुझे खा लेना। राजकुमारी कुष्ठरोगी के पास पहुंची। बोली- आपने सेवा करने को कहा था, इसलिए मैं आ गई हूं। उसे सामने देखकर रोगी सहसा चौंक गया- तुम मनुष्य नहीं देवी हो। भला कभी सुख विलास की सरिता में रहते और नई नई ब्याहता कोई राजकुमारी कुष्ठरोगी की सेवा करने इतनी रात को आ सकती है/ नहीं...नहीं, तुम मुझे क्षमा कर दो।
यह सुनकर राजकुमारी चल दी। वह बाघ के पास पहुंची- लो, अब मिटाओ अपनी भूख। बाघ के मुंह से निकला- भला कोई इंसान किसी पशु के पास इस प्रकार कहने आ सकता है/ नहीं, मैं तुम्हें नहीं खा सकता। तुम जरूर कोई देवी हो। अब वह चोर के पास गई- आप मेरे वस्त्र और भूषण ले सकते हैं। चोर हैरान- ऐसा भी कभी हुआ है, जो एक बार हाथ से निकल जाय वह खुद आकर कहे/ नहीं, मैं तुम्हारे गहने नहीं लूंगा।
मनुष्य के जीवन में त्याग, सेवा और साधना बड़ी चीजें हैं। इनसे कोई भी महान बन सकता है। दूसरे के लिए कोई कुछ छोड़ने को तैयार हो जाए तो उसे त्याग कहते हैं। सेवा तब है जब वह निस्वार्थ भाव से की जाए। साधना का अर्थ है सफलता के लिए कोशिश। किंतु आध्यात्मिक साधना में मनुष्य एकाग्र होकर ईश्वर के साथ एकात्म होने की कोशिश करता है।