अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमन को पता ही नहीं था कि बम कितना खतरनाक है: हिरोशिमा-डे
जापान के हिरोशिमा शहर के पीस पार्क में एक मशाल हमेशा जलती रहती है। जब तक दुनिया में व्यापक विनाश का एक भी हथियार है, यह मशाल जलती रहेगी। यह हमें याद दिलाती है कि आज से ठीक 69 साल पहले इस शहर पर पहली बार परमाणु बम गिराया गया था, जिससे पौने दो लाख लोग तत्काल मारे गए। तीन दिन बाद एक और बम नागासाकी शहर पर गिराया गया, जिसमें 80 हजार लोग मारे गए। इन परमाणु हमलों की त्रासदी को दोनों शहरों के लोग आज भी झेल रहे हैं।
इतना घातक फैसला लेने के पीछे कौन से तत्व थे? राजनेता, उनके व्यक्तित्व, देशों के बीच समझदारी का अभाव, वैज्ञानिक अनिश्चितताएं और दुनिया के शीर्ष नेताओं की बैठक इन सबका इसमें योगदान है।
परमाणु बम का निर्माण 1941 में तब शुरू हुआ जब नोबेल विजेता ख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन रूजवेल्ट को इस प्रोजेक्ट को फंड देने के लिए राजी किया। हालांकि, जब 12 अप्रैल 1945 को रूजवेल्ट का निधन हुआ तो बम का परीक्षण नहीं हुआ था। इसके नतीजों पर वैज्ञानिक एकमत नहीं थे।
रूजवेल्ट के बाद कॉमनसेन्स ठोस फैसले लेने के लिए ख्यात हैरी ट्रूमन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। उन्हें बम की क्षमताओं का कुछ पता नहीं था और वे जापान पर हमले के बारे में सोच रहे थे। विश्वयुद्ध में अमेरिकी मौतों और जापानियों के अहंकारी रवैये के कारण अमेरिकी नेताओं पर युद्ध खत्म करने के लिए दबाव पड़ रहा था। जर्मनी ने तो समर्पण कर दिया पर प्रशांत महासागर में जापान डटा हुआ था। परंपरागत जापानी सोच के मुताबिक समर्पण का मतलब पूरी तरह अपमान था। फिर उसे भय था कि समर्पण के बाद उसके सम्राट िहरोहितो की हत्या कर दी जाएगी।
ट्रूमन और उनके सलाहकारों को जापानियों के दृढ़-संकल्प पर कोई संदेह नहीं था। अमेरिकी मौतों से ट्रूमन हिल गए थे। उन्होंने जापान पर हमले की योजना बनाई और एटम बम के इस्तेमाल पर भी विचार किया। उन्होंने सोचा जापानियों को चेतावनी नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि तब वे अमेरिकी युद्धबंदियों को निशाना बनने वाली जगह पर ले जाएंगे और सौदेबाजी करेंगे। हार मानना तो दूर जापान अमेरिकी हमले के खिलाफ तैयारी करने लगा, उसे भरोसा था कि अमेरिका को गहरा नुकसान पहुंचाकर वह अपने पक्ष में शर्तें मनवा लेगा और युद्ध रोक देगा।
जुलाई 1945 में दो घटनाओं ने हिरोशिमा का हश्र तय कर दिया। बर्लिन में ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल, रूसी तानाशाह जोसेफ स्टालिन और ट्रूमन की बैठक और इसी बैठक में ट्रूमन को सूचना मिलना कि बम का परीक्षण कर लिया गया है। बैठक के बाद जापान से कहा गया कि वह बिना शर्त समर्पण करे या पूरे विनाश का सामना करे। जापानी सम्राट हिरोहितो के बारे में कुछ नहीं कहा गया। जापानी सरकार निराशाजनक ढंग से राजनीतिक बहस में उलझी थी। उसने चेतावनी को नजरअंदा करने का निर्णय लिया।
बम का इस्तेमाल अपरिहार्य हो गया था। पर्ल हार्बर कामीकाज के जापानी हमलों का विनाश अमेरिकी जनता देख चुकी थी। वह नहीं चाहती थी कि अमेरिका युद्ध में पूरी तरह कूद पड़े। अखबार जापानियों द्वारा सिर कलम किए अमेरिकी सैनिकों के फोटो से भरे पड़े थे। जनता जापानी समर्पण के अलावा कुछ नहीं चाहती थी। ट्रूमन पर जबर्दस्त दबाव था।
हिरोशिमा पर ही बम क्यों गिराया गया? पहली बात तो यह कि अमेिरकी सरकार को भरोसा था कि उस शहर में अमेरिकी युद्धबंदी नहीं हैं। िफर जापान की सेकंड आर्मी का यह मुख्यालय था और वहां युद्ध सामग्री बनाने के कई कारखाने थे। यह जापान का सातवां बड़ा शहर भी था। 31 जुलाई 1945 को ट्रूमन ने आदेश दिया, 'जब भी मौसम साफ हो, हिरोशिमा पर बम गिरा दिया जाए। ध्यान रखा जाए कि केवल सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया जाए। महिलाओं और बच्चों को नहीं।' आदेश से पता चलता है कि ट्रूमन को बम की क्षमताओं के बारे में कितनी कम जानकारी थी!
बम गिराने के बाद उस विमान के को-पायलट रॉबर्ट लेविस ने जब नीचे देखा तो उनके मुंह से निकला, 'ओ माय गॉड! यह हमने क्या कर डाला!!
कितना है आतंकियों की ओर से खतरा?
इतना घातक फैसला लेने के पीछे कौन से तत्व थे? राजनेता, उनके व्यक्तित्व, देशों के बीच समझदारी का अभाव, वैज्ञानिक अनिश्चितताएं और दुनिया के शीर्ष नेताओं की बैठक इन सबका इसमें योगदान है।
परमाणु बम का निर्माण 1941 में तब शुरू हुआ जब नोबेल विजेता ख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन रूजवेल्ट को इस प्रोजेक्ट को फंड देने के लिए राजी किया। हालांकि, जब 12 अप्रैल 1945 को रूजवेल्ट का निधन हुआ तो बम का परीक्षण नहीं हुआ था। इसके नतीजों पर वैज्ञानिक एकमत नहीं थे।
रूजवेल्ट के बाद कॉमनसेन्स ठोस फैसले लेने के लिए ख्यात हैरी ट्रूमन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। उन्हें बम की क्षमताओं का कुछ पता नहीं था और वे जापान पर हमले के बारे में सोच रहे थे। विश्वयुद्ध में अमेरिकी मौतों और जापानियों के अहंकारी रवैये के कारण अमेरिकी नेताओं पर युद्ध खत्म करने के लिए दबाव पड़ रहा था। जर्मनी ने तो समर्पण कर दिया पर प्रशांत महासागर में जापान डटा हुआ था। परंपरागत जापानी सोच के मुताबिक समर्पण का मतलब पूरी तरह अपमान था। फिर उसे भय था कि समर्पण के बाद उसके सम्राट िहरोहितो की हत्या कर दी जाएगी।
ट्रूमन और उनके सलाहकारों को जापानियों के दृढ़-संकल्प पर कोई संदेह नहीं था। अमेरिकी मौतों से ट्रूमन हिल गए थे। उन्होंने जापान पर हमले की योजना बनाई और एटम बम के इस्तेमाल पर भी विचार किया। उन्होंने सोचा जापानियों को चेतावनी नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि तब वे अमेरिकी युद्धबंदियों को निशाना बनने वाली जगह पर ले जाएंगे और सौदेबाजी करेंगे। हार मानना तो दूर जापान अमेरिकी हमले के खिलाफ तैयारी करने लगा, उसे भरोसा था कि अमेरिका को गहरा नुकसान पहुंचाकर वह अपने पक्ष में शर्तें मनवा लेगा और युद्ध रोक देगा।
जुलाई 1945 में दो घटनाओं ने हिरोशिमा का हश्र तय कर दिया। बर्लिन में ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल, रूसी तानाशाह जोसेफ स्टालिन और ट्रूमन की बैठक और इसी बैठक में ट्रूमन को सूचना मिलना कि बम का परीक्षण कर लिया गया है। बैठक के बाद जापान से कहा गया कि वह बिना शर्त समर्पण करे या पूरे विनाश का सामना करे। जापानी सम्राट हिरोहितो के बारे में कुछ नहीं कहा गया। जापानी सरकार निराशाजनक ढंग से राजनीतिक बहस में उलझी थी। उसने चेतावनी को नजरअंदा करने का निर्णय लिया।
बम का इस्तेमाल अपरिहार्य हो गया था। पर्ल हार्बर कामीकाज के जापानी हमलों का विनाश अमेरिकी जनता देख चुकी थी। वह नहीं चाहती थी कि अमेरिका युद्ध में पूरी तरह कूद पड़े। अखबार जापानियों द्वारा सिर कलम किए अमेरिकी सैनिकों के फोटो से भरे पड़े थे। जनता जापानी समर्पण के अलावा कुछ नहीं चाहती थी। ट्रूमन पर जबर्दस्त दबाव था।
हिरोशिमा पर ही बम क्यों गिराया गया? पहली बात तो यह कि अमेिरकी सरकार को भरोसा था कि उस शहर में अमेरिकी युद्धबंदी नहीं हैं। िफर जापान की सेकंड आर्मी का यह मुख्यालय था और वहां युद्ध सामग्री बनाने के कई कारखाने थे। यह जापान का सातवां बड़ा शहर भी था। 31 जुलाई 1945 को ट्रूमन ने आदेश दिया, 'जब भी मौसम साफ हो, हिरोशिमा पर बम गिरा दिया जाए। ध्यान रखा जाए कि केवल सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया जाए। महिलाओं और बच्चों को नहीं।' आदेश से पता चलता है कि ट्रूमन को बम की क्षमताओं के बारे में कितनी कम जानकारी थी!
बम गिराने के बाद उस विमान के को-पायलट रॉबर्ट लेविस ने जब नीचे देखा तो उनके मुंह से निकला, 'ओ माय गॉड! यह हमने क्या कर डाला!!
कितना है आतंकियों की ओर से खतरा?
राहत की बात | कितना है आतंकियों की ओर से खतरा? | जोखिम यह है |
आतंकियों द्वारा दुनिया के किसी रिएक्टर, एटमी ठिकाने अथवा स्टोरेज साइट से परमाणु सामग्री यूरेनियम या प्लूटोनियम की चोरी। | यूरेनियम या प्लूटोनियम की चोरी | एटमी ठिकानों पर मजबूत सुरक्षा रहती है। इसके अलावा वहां परमाणु सामग्री इतनी नहीं रखी जाती कि उससे बम बनाया जा सके। |
तस्करी करने से पहले ऐसे उपाय करना कि सीमा पर या किसी भी जगह उपकरणों से यूरेनियम या प्लूटोनियम का पता लगाया जा सके। | उसे सुरक्षित जगह पहुंचाना | सीमा पार करते वक्त सामग्री को डिटेक्ट होने से बचाने के लिए लेड शिल्डिंग जरूरी होती है। इसे हासिल करना कठिन होता है। |
सबसे आसान तरीका है कि 50 किलो यूरेनियम और गन पावडर जैसे साधारण विस्फोटक से कामचलाऊ बम बनाना। | परमाणु सामग्री से हथियार बनाना | एटमी हथियार बनाने के लिए ऊंचे दर्जे की विशेषज्ञता, उपकरण और सुविधा जरूरी होती है। यह आतंकियों के लिए असंभव सी बात है। |
मादक पदार्थों के तस्करों के रूट का इस्तेमाल कर बम को तस्करी के जरिये उस देश के भीतर पहुंचाना, जहां विस्फोट करना है। | तस्करी के जरिये लक्ष्य पर पहुंचाना | सीमा पर प्लूटोनियम तो सामान्य सेंसरों से भी पकड़ में जाता है। एटमी सामग्री को ले जाने वाले जहाज या ट्रक के लिए जांच का जोखिम। |
कच्चे परमाणु बम को आम विस्फोटकों से ही सक्रिय किया जा सकता है। एक अन्य किस्म को हवाई जहाज से गिराया जा सकता है। | परमाणु विस्फोट को अंजाम देना | यदि किसी एटमी ठिकाने से बम ही चुरा लिया गया हो तो इसका अत्याधुनिक लॉकिंग सिस्टम खोलना बहुत ही कठिन होता है। |