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इराक में हालिया हिंसा तो चरम पर है ही, लेकिन यह देश करीब पिछले डेढ़ दशक से आतंकवाद, हिंसा और खून-खराबे के कारण ही चर्चा में है, जबकि एक समय इसका बेहद स्वर्णिम इतिहास रहा है।
   
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पहले था ओटोमन साम्राज्य
मिस्र,सुमेरिया और हड़प्पा इन तीन सभ्यताओं में से इराक सुमेरियन सभ्यता का हिस्सा रहा है। उस काल में यह सभ्यता बेहद समृद्ध थी और हड़प्पा के लोग सुमेरियन सभ्यता के लाेगों के साथ व्यापार के लिए उत्सुक रहतेे थे। 1534 से 1918 तक इराक ओटोमन साम्राज्य का हिस्सा रहा था। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना ने ओटोमन साम्राज्य पर विजय प्राप्त कर ली थी। 1917 में ब्रिटेन ने बगदाद काे सीज कर दिया था और 1921 में ब्रिटेन ने मेसोपोटामिया में सरकार का गठन किया और क्षेत्र का नाम इराक रख दिया।
1921 में मक्का के शरीफ हुसैन बिन अली के बेटे फैसल को इराक का पहला राजा घोषित किया गया। इसके बाद 1932 में हिंसक झड़पों के एक लंबे इतिहास के बाद इराक स्वतंत्र देश बना। हालांकि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन ने फिर इराक पर कब्जा कर लिया था। बाद में 1958 में अंग्रेजों के हाथ से सत्ता छीनी गई।

इराक का रहा है स्वर्णिम इतिहास
एक समय था जब बगदाद अब्बासी खलिफाओं का केंद्र रहा है। इस दौर में इराक के शहर बेहद समृद्ध हुआ करते थे। यहीं से दुनियाभर में व्यापार और संस्कृतियों का विस्तार होना शुरू हुआ था। यहां के शहर उस समय बेहद आधुनिक हुआ करते थे, जो पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल थे। अब्बासी खलिफाओं ने शिक्षा, व्यापार, तकनीक, सामाजिक विकास पर काफी जोर दिया। इसे पूरी दुनिया खासकर अरब वर्ल्ड में तेजी से फैलाया। मध्यकाल में इराक ज्ञान का केंद्र रहा है। इस काल में जहां यूरोप जैसे क्षेत्र में दास और स्वामी हुआ करते थे और लोगों को सैकड़ों किस्म के टैक्स देने पड़ते थे, वहीं बगदाद अरब वर्ल्ड का केंद्र हुआ करता था और इसके कोने-कोने में विकास हो रहा था। इसके बाद औपनिवेशिक काल में इराक की हालत खराब होनी शुरू हुई क्योंकि ब्रिटेन ने अपने शासन में भारत की ही तरह इराक की अर्थव्यवस्था भी चौपट कर दी। इराक की स्वतंत्रता के बाद 1980 का दशक इराक के लिए गोल्डन पीरियड रहा है। इस समय तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के नेतृत्व में काफी तरक्की हुई। तब इराक की गिनती दुनिया के सबसे बेहतरीन देशों में होती थी।

बर्बादी के तीन कारण इराक का इतिहास बेहद स्वर्णिम रहा है, लेकिन कुछ ऐसे कारण हमेशा इराक से जुड़े रहे, जिसके कारण इस समृद्ध देश का लगातार पतन होता चला गया। इसके तीन प्रमुख कारण, जो कुछ इस तरह हैं:

ब्रिटेन ने लूटा इराक की बर्बादी की नींव ब्रिटेन ने रखी थी। ब्रिटेन ने लंबे समय तक इराक पर कब्जा किया और इसके प्राकृतिक संसाधनों का खूब दोहन किया। इराक की अर्थव्यवस्था बेहद मजबूत थी, लेकिन ब्रिटेन ने अपने औपनिवेशिक काल में इराकी अर्थव्यवस्था को अपनी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जोड़ कर खुद को समृद्ध किया और इराक को खस्ताहाल बना दिया। यही काम ब्रिटेन ने भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ भी किया था।
,अमेरिका ने तोड़ दिया: अमेरिका और ब्रिटेन ने इराक पर यह शक किया कि उसके पास वेपन्स ऑफ मास डिस्ट्रक्शन हैं और सिर्फ वेपन्स होने के शक की वजह से अमेरिका के नेतृत्व में 2003 में हमला कर दिया। इसके बाद से अमेरिकी सेना के वहां रहने से और तबाही मची। इराक की अपनी अर्थव्यवस्था पूरी तरह टूट गई। वहां पर महिलाओं की स्थिति बिगड़ी और आतंकवाद भी चरम पर गया। शहरों में महिलाओं की शिक्षा दर 75 फीसदी से भी कम हो गई, जो लगातार और कम हो रही है।

खुद इराकी नेता कम नहीं: इराक की बर्बादी में इराक के नेताओं का भी कम हाथ नहीं है। सद्दाम हुसैन अपने देश को एकजुट करने में नाकाम थे। वे सुन्नी राष्ट्र बनाना चाहते थे और इसके लिए वे तानाशाही करते थे। इस दौरान शिया और कुर्द वर्ग पूरी तरह उनके खिलाफ थे। सद्दाम अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी कभी समझौता नहीं करते थे। इस कारण हमेशा स्थिति बिगड़ी। दूसरी तरफ नई शिया सरकार ने भी सुन्नी समुदाय की अनदेखी की और स्थिति और बिगड़ती चली गई।

वो कहते हैं न समय बलवान होता है सही कहा है किसी विद्वान् कभी अमेरिका इराक के साथ होता था सद्दाम हुसैन की मुखालफत करने वाला अमेरिका खुद कभी उनके साथ हुआ करता था। अमेरिका ईरान के खिलाफ था और इसी कर्ण जब इराक और ईरान में 1980 से लेकर 1988 तक खाड़ी युद्ध हुआ तो वह इराक के साथ रहा। दरअसल, अमेरिका ईरान में 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान के खिलाफ था और वो ईरान के खिलाफ हमेशा सद्दाम हुसैन की मदद लेता रहा। इस दौरान ब्रिटेन भी इराक के साथ रहा, लेकिन जब इराक ने कुवैत में अपनी सेना भेजी और उसे इराक में मिलाना चाहा तो अमेरिका और ब्रिटेन दोनों इराक के खिलाफ हो गये और इसके बाद कुवैत से इराकी सेना वापस भेजने के लिए दोनों देशो ने अन्य देशो के साथ मिलकर इराक के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया यहाँ से इराक और अमेरिका आमने-सामने आ गये।
जानिए कौन हैं ये कुर्द?
इराक में हमेशा शिया और सुन्नी मुसलमान आमने –सामने रहे हैं, लेकिन इनके आलावा कुर्दों की मौजूदगी भी खूब चर्चा में रहती है। कुर्द जाति के लोग विस्तृत रूप से कुर्दिस्तान के निवाशी है। इराक के अर्द्ध-स्वायत क्षेत्र कुर्दिस्तान की राजधानी इरबिल है। इराकी कुर्दिस्तान एक संघीय इकाई है।, जिसको इराक के नये सविधान के अनुसार विशाल अधिकार प्राप्त हैं। कुर्द कट्टर सुन्नी मुस्लिम हैं और वे बंजारा जाती के लोग हैं। इस जाती के लोग तुर्की के दक्षिण-पूर्व में, सीरिया के उत्तर पूर्व में और ईरान था इराक के पश्चिम इलाको में भी रहते हैं। ये पाने लिए कुर्दिस्तान को एक स्वतंत्र देश घोषित करने की मांग लम्बे समय से कर रहे हैं। इराक में कुर्दों की जनसंख्या करीब 40 लाख है।

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