एनसीडी और एफडी में से सोच-समझकर चुनें
पूंजी जुटाने के लिए कंपनियां इन दिनों मार्केट में नॉन- कनवर्टिबल डिबेंचर्स यानी एनसीडी लॉन्च कर रही हैं। लेकिन निवेशकों के सामने दिक्कत ये है कि वे इन डिबेंचरों में निवेश करें या नहीं। एनसीडी यानी नॉन- कनवर्टिबल डिबेंचर्स हैं जो फिक्सड रिटर्न की तरह हैं, क्योंकि कभी कनवर्ट होकर इक्विटी नहीं बनते हैं। बाजार में फिलहाल जो एनसीडी आ रहे हैं उनमें फिक्स्ड डिपॉजिट से ज्यादा रिटर्न मिलते हैं।
एफडी के मुकाबले एनसीडी होल्डर को कंपनी के ऐसेट्स पर अधिकार मिलता है जो एफडी होल्डर को नहीं मिलता है। एनसीडी दो तरह के होते हैं। सिक्योर्ड एनसीडी और अनसिक्योर्ड एनसीडी। एनसीडी कौन-सा चुनें इसके लिए उसकी रेटिंग देखनी चाहिए। एनसीडी में निवेशकों के पास लिक्विडिटी रहती हैं क्योंकि एनसीडी लिस्ट होते हैं जबकि फिक्स्ड डिपॉजिट लिस्ट नहीं होते हैं। एनसीडी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट किए जा सकते हैं और शेयर बाजार में इसका कारोबार हो सकता है। इसमें प्राइस मूवमेंट एनसीडी जारी करने वाली कंपनी या इंटरेस्ट के मूवमेंट के आधार पर होता है। एफडी स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट नहीं होता है।
समय अवधि देखना जरूरी (Time Period)
एनसीडी में समय अवधि देखना जरूरी है और लंबी अवधि में ये फिक्सड डिपॉजिट से बेहतर रिटर्न देते हैं। एनसीडी का जोखिम रेटिंग पर निर्भर करता है। रेटिंग जितनी कम, जोखिम उतना ही ज्यादा होता है। हालांकि जिसमें ज्यादा जोखिम होता है, ब्याज भी उस पर ज्यादा होता है। एनसीडी में कम रेटिंग पर ज्यादा जोखिम रहता है और ज्यादा इंटरेस्ट मिलता है।
एफडी की रेटिंग नहीं (Fixed Deposit Have No Ratings)
वहीं बैंकों की एफडी स्कीम की रेटिंग नहीं की जाती है। एनबीएफसी की स्कीम की रेटिंग जरूर होती है। कम रेटिंग का मतलब अधिक जोखिम पर अधिक इंटरेस्ट मिलता है। बैंक एफडी में फिक्स इंटेरेस्ट है और जोखिम नहीं है। एक लाख रुपये तक मूल रकम इंश्योरेंस के रूप में रहती है। एनसीडी की निवेश की अवधि 3-5 साल तक होती है और इसमें इंटरेस्ट मासिक, तिमाही, सालाना या फिर मैच्योरिटी पर मिलता है। एफडी की निवेश की अवधि कुछ हफ्तों से लेकर 10 साल तक होती है और इंटरेस्ट मासिक, तिमाही, सालाना या मैच्योरिटी पर मिलता है। एनसीडी में ब्याज दर फिक्स नहीं होता है जबकि एफडी में इंटरेस्ट रेट फिक्स होता है। एनसीडी में इंटरेस्ट इनकम पर स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है लेकिन इंटरेस्ट पर टीडीएस नहीं कटता है। शेयर बाजार पर इसकी खरीद-बिक्री होती है, इसलिए शॉर्ट टर्म या फिर लांग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है। वही एफडी में 5 साल या उससे अधिक की एफडी स्कीम पर इनकम टैक्स छूट मिलती है। सालाना दस हजार या उससे अधिक के इंटरेस्ट पर टीडीएस कटता है। एनसीडी जब सब्सक्रिप्शन के खुला हो तभी निवेश किया जा सकता है, शेयर बाजार में मैच्योरिटी से पहले इसे बेच सकते हैं। इसके लिए डीमैट अकाउंट की जरूरत पड़ेगी। बैंक एफडी स्कीम में कभी भी निवेश कर सकते हैं। मैच्योरिटी से पहले पैसे निकालने पर मामूली जुर्माना देना पड़ सकता है। एनसीडी में जोखिम उठाने की क्षमता हो, उनके लिए सही विकल्प है। वहीं एफडी छोटे निवेशकों और कम जोखिम उठाने वालों के लिए सही विकल्प है।
एफडी के मुकाबले एनसीडी होल्डर को कंपनी के ऐसेट्स पर अधिकार मिलता है जो एफडी होल्डर को नहीं मिलता है। एनसीडी दो तरह के होते हैं। सिक्योर्ड एनसीडी और अनसिक्योर्ड एनसीडी। एनसीडी कौन-सा चुनें इसके लिए उसकी रेटिंग देखनी चाहिए। एनसीडी में निवेशकों के पास लिक्विडिटी रहती हैं क्योंकि एनसीडी लिस्ट होते हैं जबकि फिक्स्ड डिपॉजिट लिस्ट नहीं होते हैं। एनसीडी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट किए जा सकते हैं और शेयर बाजार में इसका कारोबार हो सकता है। इसमें प्राइस मूवमेंट एनसीडी जारी करने वाली कंपनी या इंटरेस्ट के मूवमेंट के आधार पर होता है। एफडी स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट नहीं होता है।
समय अवधि देखना जरूरी (Time Period)
एनसीडी में समय अवधि देखना जरूरी है और लंबी अवधि में ये फिक्सड डिपॉजिट से बेहतर रिटर्न देते हैं। एनसीडी का जोखिम रेटिंग पर निर्भर करता है। रेटिंग जितनी कम, जोखिम उतना ही ज्यादा होता है। हालांकि जिसमें ज्यादा जोखिम होता है, ब्याज भी उस पर ज्यादा होता है। एनसीडी में कम रेटिंग पर ज्यादा जोखिम रहता है और ज्यादा इंटरेस्ट मिलता है।
एफडी की रेटिंग नहीं (Fixed Deposit Have No Ratings)
वहीं बैंकों की एफडी स्कीम की रेटिंग नहीं की जाती है। एनबीएफसी की स्कीम की रेटिंग जरूर होती है। कम रेटिंग का मतलब अधिक जोखिम पर अधिक इंटरेस्ट मिलता है। बैंक एफडी में फिक्स इंटेरेस्ट है और जोखिम नहीं है। एक लाख रुपये तक मूल रकम इंश्योरेंस के रूप में रहती है। एनसीडी की निवेश की अवधि 3-5 साल तक होती है और इसमें इंटरेस्ट मासिक, तिमाही, सालाना या फिर मैच्योरिटी पर मिलता है। एफडी की निवेश की अवधि कुछ हफ्तों से लेकर 10 साल तक होती है और इंटरेस्ट मासिक, तिमाही, सालाना या मैच्योरिटी पर मिलता है। एनसीडी में ब्याज दर फिक्स नहीं होता है जबकि एफडी में इंटरेस्ट रेट फिक्स होता है। एनसीडी में इंटरेस्ट इनकम पर स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है लेकिन इंटरेस्ट पर टीडीएस नहीं कटता है। शेयर बाजार पर इसकी खरीद-बिक्री होती है, इसलिए शॉर्ट टर्म या फिर लांग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है। वही एफडी में 5 साल या उससे अधिक की एफडी स्कीम पर इनकम टैक्स छूट मिलती है। सालाना दस हजार या उससे अधिक के इंटरेस्ट पर टीडीएस कटता है। एनसीडी जब सब्सक्रिप्शन के खुला हो तभी निवेश किया जा सकता है, शेयर बाजार में मैच्योरिटी से पहले इसे बेच सकते हैं। इसके लिए डीमैट अकाउंट की जरूरत पड़ेगी। बैंक एफडी स्कीम में कभी भी निवेश कर सकते हैं। मैच्योरिटी से पहले पैसे निकालने पर मामूली जुर्माना देना पड़ सकता है। एनसीडी में जोखिम उठाने की क्षमता हो, उनके लिए सही विकल्प है। वहीं एफडी छोटे निवेशकों और कम जोखिम उठाने वालों के लिए सही विकल्प है।