अगर कच्चा तेल 5700 रुपए के ऊपर बना रहता है तो 5820-5990 रुपए प्रति बैरल का स्तर दिखा सकता है।
पिछला हफ्ता कमोडिटी बाजार के लिए खराब रहा। बुलियन, एनर्जी और मेटल तीनों में गिरावट दर्ज की गई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना 1.5 फीसदी गिरा तो घरेलू बाजार में 2 फीसदी सस्ता हुआ। कॉमैक्स (Comex) पर सोना 8 महीने के निचले स्तर पर बंद हुआ। घरेलू बाजार में भी रुपए में कमजोरी के बावजूद सोना 27000 के नीचे ही बना हुआ है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की मजबूती ने सोने को पस्त कर रखा है। डॉलर इंडेक्स लगातार 14 महीने की ऊंचाई पर बना है। इसमें लगातार 6 हफ्ते से तेजी का रुझान ही दिखा है। ग्लोबल चिंताओं के बावजूद सप्लाई बढ़ने से कच्चा तेल बिकवाली का शिकार हुआ। अमेरिका के अच्छे रोजगार के आंकड़ों ने क्रूड को थोड़ा सपोर्ट दिया लेकिन गिरावट को थाम नहीं सके। बीते दिन जोरदार उठापटक के बाद कच्चा तेल करीब एक फीसदी की गिरावट के साथ 93 डॉलर के नीचे बंद हुआ है। वहीं ब्रेंट क्रूड में गिरावट और गहरा गई है। ये 2 साल के निचले स्तर पर टिका हुआ है। भाव 97 डॉलर के भी नीचे जा चुका है। पिछले हफ्ते बेसमेटल में जोरदार गिरावट देखने को मिली। निकेल की कीमतें 7 फीसदी तक फिसल गया है। इस हफ्ते जिंक 4 फीसदी, कॉपर 2 फीसदी, लेड 2.82 फीसदी और एल्यूमिनियम 2.5 फीसदी कीमतें गिरी है।
पिछला हफ्ता कमोडिटी बाजार के लिए खराब रहा। बुलियन, एनर्जी और मेटल तीनों में गिरावट दर्ज की गई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना 1.5 फीसदी गिरा तो घरेलू बाजार में 2 फीसदी सस्ता हुआ। कॉमैक्स (Comex) पर सोना 8 महीने के निचले स्तर पर बंद हुआ। घरेलू बाजार में भी रुपए में कमजोरी के बावजूद सोना 27000 के नीचे ही बना हुआ है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की मजबूती ने सोने को पस्त कर रखा है। डॉलर इंडेक्स लगातार 14 महीने की ऊंचाई पर बना है। इसमें लगातार 6 हफ्ते से तेजी का रुझान ही दिखा है। ग्लोबल चिंताओं के बावजूद सप्लाई बढ़ने से कच्चा तेल बिकवाली का शिकार हुआ। अमेरिका के अच्छे रोजगार के आंकड़ों ने क्रूड को थोड़ा सपोर्ट दिया लेकिन गिरावट को थाम नहीं सके। बीते दिन जोरदार उठापटक के बाद कच्चा तेल करीब एक फीसदी की गिरावट के साथ 93 डॉलर के नीचे बंद हुआ है। वहीं ब्रेंट क्रूड में गिरावट और गहरा गई है। ये 2 साल के निचले स्तर पर टिका हुआ है। भाव 97 डॉलर के भी नीचे जा चुका है। पिछले हफ्ते बेसमेटल में जोरदार गिरावट देखने को मिली। निकेल की कीमतें 7 फीसदी तक फिसल गया है। इस हफ्ते जिंक 4 फीसदी, कॉपर 2 फीसदी, लेड 2.82 फीसदी और एल्यूमिनियम 2.5 फीसदी कीमतें गिरी है।
कॉपर में इस हफ्ते बढत
चीन की आर्थिक रफ्तार कमजोर रहने की संभावना से बेसमेटल में पिछले हफ्ते जोरदार गिरावट दर्ज की गई। कॉपर की बात करें तो इसमें लगातार तीसरे हफ्ते गिरावट दर्ज की गई। इस हफ्ते कॉपर में बढ़त के साथ दायरे में कारोबार रह सकता है। कॉपर के लिए 428-440 रुपए का रेजिस्टेस लेवल है वहीं नीचे में 392-380 रुपए का सपोर्ट मिल सकता है। अगले हफ्ते कारोबारी ऊपरी स्तर पर बिकवाली की रणनीति अपना सकते हैं। अगर एमसीएक्स नवंबर वायदा 417 के नीचे बरकरार रहता है तो 392 रुपए का लक्ष्य देखने को मिल सकता है।
कच्चा तेल दायरे में रहेगा
अमेरिका रुस पर नए प्रतिबंध लगाएगा, जिसकी वजह से शुक्रवार को कच्चे तेल में रिकवरी देखने को मिली। हालांकि, पूरे हफ्ते कीमतों में उतार-चढ़ाव का माहौल रहा। कैपिटल ग्लोबल रिसर्च के अनुसार इस हफ्ते मजबूत डॉलर पर्याप्त सप्लाई की वजह से कच्चा तेल दायरे में कारोबार करता नजर सकता है। कच्चे तेल के लिए 5600-5350 रुपए का सपोर्ट लेवल है वहीं 6000-6200 रुपए के स्तर पर रेजिस्टेस नजर रहा है। अगले हफ्ते कच्चे तेल में निचले स्तर पर खरीदारी की जा सकती है।
सोना में गिरावट का रुख
कमोडिटी एक्सपर्ट के मुताबिक इस हफ्ते सोना अक्टूबर वायदा में गिरावट का रुख देखने को मिल सकता है। इस हफ्ते के लिए 26,300-26,000 का अहम सपोर्ट लेवल है। वहीं ऊपर में 27,200-27,500 रेजिस्टेन्स लेवल है। अगले हफ्ते ऊपरी स्तर पर बिकवाली से कारोबारियों मुनाफा हो सकता है। अगर सोना अक्टूबर वायदा 26,800 के नीचे सस्टेन करता है, तो 26,600-26,300 रुपए प्रति 10 ग्राम का स्तर दिखा सकता है। तकनिकी रुप से चांदी दिसंबर वायदा में गिरावट गिरावट का रुझान नजर रहा है।
अगले हफ्ते चांदी के लिए 41,500-42,900 का रेजिस्टेंस लेवल है वहीं नीचे में 38,400-37,000 रुपए का अहम सपोर्ट लेवल है। चांदी में भी ऊपरी स्तर पर बिकवाली की जा सकती है, अगर 40,800 के नीचे चांदी रहती है, तो 39,500 रुपए प्रति किलो के स्तर तर फिसल सकती है। हाजिर बाजार से मांग घटने से सोने की कीमतों पर दबाव देखने को मिल सकता है। डॉलर के मुकाबले यूरो कई सालों के निचले स्तर पर फिसल गया है, जिससे भी दबाव बन सकता है। इसके साथ अमेरिकी अर्थव्यवस्था में लगातार सुधार हो रहा है, जिसके कारण फेड समय से पहले ब्याज दरों को बढ़ा सकता है।
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