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इस आम बजट में क्या था पीएम नरेंद्र मोदी सरकार का फैसला

बजट में वित्त मंत्री ने म्यूचुअल फंड के इक्विटी फंड को छोड़कर बाकी सभी फंड पर लॉन्ग कैपिटल गेन्स टैक्स दोगुना कर दिया था। उन्होंने डेट फंड, लिक्विड फंड, गोल्ड फंड और इंटरनेशनल फंड पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स 10 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया। अब लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स के लिए किसी एक म्यूचुअल फंड स्कीम में कम से कम 3 साल तक पैसा लगाना होगा। 3 साल से पहले पैसा निकाला तो शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लगेगा। ये शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स निवेशक के टैक्स स्लैब के हिसाब से लगता है। अगर आप 30 फीसदी के स्लैब में है तो शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स भी 30 फीसदी लगेगा। डेट फंड स्कीम में फायदा उन्हीं को होगा जो 10 फीसदी या टैक्स फ्री इनकम स्लैब में आते हैं। वित्त मंत्री का भी मानना था कि डेट फंड के पुराने टैक्स स्ट्रक्चर की वजह से बड़े निवेशक इसका इस्तेमाल आर्बिट्राज के लिए करते थे। सरकार ने म्यूचुअल फंड की डिविडेंड स्कीमों पर भी टैक्स बढ़ा दिया। इन पर टैक्स 2.5 फीसदी से 3 फीसदी बढ़ गया। अब फिक्स्ड डिपॉजिट के बजाय डेट फंड में पैसा लगाने से ज्यादा टैक्स नहीं बचेगा। इससे फोकस एमएफ इक्विटी की ओर बढ़ा। 

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क्या है कारण

मोदी सरकार पर भरोसा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया विदेश दौरे और केंद्रीय मंत्रिमंडल के आर्थिक व प्रशासनिक सुधार संबंधी फैसलों से कंपनियों व निवेशकों में लौटा विश्वास, शेयर बाजार का लगातार बेहतर प्रदर्शन, म्यूचुअल फंड की इक्विटी स्कीमों में निवेशकों को आम बजट में कई रियायतें, यूरोपीय और अमेरिकी बाजार में स्टैगनेशन, अमेरिका में ब्याज दरों को लेकर अनिश्चतताएं। ये तमाम कारण हैं कि इक्विटी बाजार मजबूती की ओर है। जिससे सेंसेक्स और निफ्टी अपने उच्च शिखर की ओर है। यूटीआई इक्विटी जी, एसबीआई इमजिर्ंग बिजनेस, आईसीआईसीआई प्रू इंडो एशिया इक्विटी रेग्यूलर ग्रोथ, एक्सिस इक्विटी
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बिड़ला सनलाइफ फंट्रलाइन इक्विटी, बीएनपी परिबास इक्विटी, क्वांटम लांग टर्म इक्विटी घरेलू निवेशकों ने विदेशी संस्थागत निवेशकों) को पीछे छोड़ा

घरेलू निवेशकों ने अगस्त में इक्विटी 6900 करोड़ रुपये निवेश किया, तो एफआईआई ने 6300 करोड़ रुपये

अगस्त में एमएफ की इक्विटी स्कीमों कुल निवेश एक लाख करोड़ हुआ, तो जुलाई में 1.13 लाख करोड़ रुपये

एमएफ की इक्विटी योजनाओं में सबसे अधिक एसआईपी (सिप) के जरिये हुआ निवेश

सेंसेक्स और निफ्टी के उच्च शिखर पर कारोबार करने के चलते एमएफ इक्विटी स्कीमों में रिटर्न की संभावनाएं मौजूद खराब फंडों से निकलना बेहतर

अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ शेयर बाजार के अच्छा प्रदर्शन करने से म्यूचुअल फंड की इक्विटी स्कीमों में दिख रही संभावनाओं के दौर में अगर आप एमएफ के किसी खराब फंड या पोर्टफोलियो में फंसे हुए हैं, तो यह समय करेक्शन का है, उससे निकलने का है। यदि एक खास म्युचुअल फंड योजना आपके लक्ष्य के मुताबिक अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही है, तो उसमें टिके रहने का कोई मतलब नहीं है। तुरंत स्विच ओवर कीजिये। मान लीजिये आप पांच साल में एक कार खरीदना चाहते हैं और इसके लिए आपको पांच लाख रुपये की जरूरत होगी। इसके लिए आप सालाना 12 फीसदी रिटर्न हासिल करने के लक्ष्य के साथ एक निश्चित रकम निवेश कर रहे हैं, लेकिन इस समय आपका फंड वह रिटर्न नहीं दे रहा है और निकट भविष्य में भी आपकी इच्छा पूरी होने की संभावना नहीं है तो आपके लिए उस फंड से निकलना ही बेहतर है। एक निवेशक को चाहिए कि वह साल में कम से कम दो बार अपने पोर्टफालियो की समीक्षा करे। आप अपने फंड की उसके प्रतिद्वंद्वी फंडों से तुलना करें, देखें कि समान अवधि में रिटर्न में कितना अंतर है। ज्यादा अंतर है तो अपने फंड से निकलने की सोचें। यदि एक फंड तीन तिमाहियों से ज्यादा वक्त से खराब प्रदर्शन कर रहा है तो उसमें किए निवेश में बदलाव पर विचार करना चाहिए। यदि आपका स्वर्ण क्षेत्र के फंड में निवेश है, तो आप इससे बाहर नहीं निकल सकते क्योंकि इस संपत्ति र्शेणी ने बीते दो साल से अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है। ऐसे फंडों में निवेश का मुख्य उद्देश्य पूंजीगत लाभ नहीं है, बल्कि पोर्टफोलियो के जोखिम को कम करना है। सेक्टर फंड पर अधिक ध्यान दें। 

मान लीजिए कि आपका फंड ए, फंड एच, फंड एल और फंड एम में निवेश है, जो सभी इक्विटी डायवर्सिफाइड र्शेणी के हैं। इनमें से फंड एच का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा है। सभी निवेशकों को फंड एच में समाहित कर दीजिए या आप छोटे फंड निवेशों को बड़े फंडों में ले जा सकते हैं। वि त्त मंत्री अरुण जेटली की आम बजट में म्यूचुअल फंड में निवेश को लेकर की गई घोषणाएं रंग लाने लगी हैं। गत दो महीने के आंकड़ों पर गौर करें तो कह सकते हैं कि पिछले पांच साल से इक्विटी म्यूचुअल फंडों से मुंह मोड़े घरेलू निवेशकों ने शानदार इंट्री की है। इंट्री इतनी धमाकेदार है कि घरेलू निवेशकों ने म्यूचुअल फंड बाजार में सिक्का जमाए बैठे एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशकों) को पीछे छोड़ दिया है। पिछले वर्ष के अगस्त माह की तुलना में इस वर्ष अगस्त के दौरान म्यूचुअल फंड में एफआईआई से अधिक निवेश कर घरेलू निवेशकों ने मानो इतिहास रच दिया है। वित्त बाजार के इतिहास में पहली बार इस माह में घरेलू निवेशकों ने म्यूचुअल फंडों में 6900 करोड़ रुपये निवेश किया है, जबकि एफआईआई ने 6300 करोड़ रुपये निवेश किया है। मजेदार है कि ये सभी निवेश म्यूचुअल फंडों की इक्विटी और इक्विटी लिंक सेविंग स्कीमों (ईएलएसएस) में हुए हैं।

अगस्त में कुल निवेश की बात की जाय तो करीब एक लाख करोड़ रुपये से अधिक निवेश केवल म्यूचुअल फंडों के इक्विटी व ईएलएसएस स्कीमों में हुए हैं। इससे पिछले माह जुलाई में इन स्कीमों में एक लाख 13 हजार करोड़ रुपये निवेश किए गए हैं। जबकि दिलचस्प यह है कि जून में इन स्कीमों से 59 हजार करोड़ रुपये की बिकवाली की गई थी। पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के आंकड़ों के अनुसार निवेशकों ने मई में म्यूचुअल फंडों में केवल 33,661 करोड़ रुपये निवेश किया था।

केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद वित्त बाजार में सकारात्मक सेंटिमेंट का आलम यह है कि गत दो महीनों में म्यूचुअल फंड रूट के जरिये घरेलू निवेशकों का निवेश लगातार बढ़ा है। जून में म्यूचुअल फंड के जरिये किए गए कुल निवेश में घरेलू निवेशकों की हिस्सेदारी एफआईआई द्वारा हुए निवेश की 30 फीसदी थी, जुलाई में यह हिस्सेदारी बढ़ कर 44 फीसदी हो गई, लेकिन अगस्त में छलांग लगाते हुए यह हिस्सेदारी 108 फीसदी हो गई।

म्यूचुअल फंड की इक्विटी स्कीमों में बढ़े निवेश की खास बात है कि इसमें एसआईपी (सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) के जरिये जबर्दस्त निवेश हुआ है। इसमें लगभग हर महीने औसतन तीन हजार करोड़ से 3500 करोड़ रुपये निवेश हुआ है। बताते चलें कि म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए एसआईपी सबसे लोकप्रिय तरीका है। अधिकांश घरेलू निवेशक एसआईपी के जरिये ही म्यूचुअल फंड स्कीमों में निवेश करते हैं। नए निवेशक और कामकाजी लोग एसआईपी को खूब पसंद करते हैं। म्यूचुअल फंड में आई बहार को देखकर लगता है कि आम बजट के बाद बाजार के जानकारों ने जिस तरह इस सेक्टर को निवेश के लिहाज से मायूसी वाला क्षेत्र करार दिया था, वह गलत साबित हुआ। सरकार ने इक्विटी स्कीमों को जो सहूलियतें दीं, म्यूचुअल फंड के लिए संजीवनी साबित हुईं। अब आगे भी मोदी सरकार के बेहतर प्रदर्शन करने के साथ शेयर बाजार के कुलांचे भरते रहने से इस सेक्टर में रिटर्न की जोरदार संभावनाएं बनी रहेंगी।

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