मॉम यानि एमओएम, मार्स आर्बिटर मिशन मंगल: भारत मंगल ग्रह की कक्षा में अपने यान को पहले ही प्रयास में सफलता स्थापित करने वाला दुनिया का पहला देश बना गया। इससे पहले केवल अमेरिका, रूस व यूरोप ही यह सफलता हासिल कर सकें, लेकिन पहले प्रयास में वे भी यह कारनामा नहीं कर सके। साथ ही वह एशिया का भी पहला देश है जिसने यह मुकाम हासिल किया है। इससे पहले चीन, जापान अपने प्रयासों में नाकाम रहे।
बंगलूरू: भारतीय अंतरिक्ष इतिहास के लिए बुधवार का दिन मील का पत्थर साबित हुआ। मंगल (लाल) ग्रह की कक्षा में अपने मंगल यान को सफलतापूर्वक प्रवेश कराकर भारत एशिया का ही नहीं बल्कि दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया जिसने अपने पहले ही प्रयास में इतनी अहम कामयाबी हासिल की। इसी के साथ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) विश्व के तीन चुनिंदा देशों अमेरिका, यूरोप और रूस की अंतरिक्ष एजेंसियों के क्लब में शामिल हो गया, जो पहले इस कामयाबी का स्वाद चख चुकी हैं। मंगल यान ने कक्षा में स्थापित होते ही अपना काम करना भी शुरू कर दिया है। यान ने वहां से कुछ तस्वीरें भी भेजी हैं, जिन्हें इसरो जल्द जारी कर सकता है। इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इसरो के केंद्र में मौजूद थे।
इसरो के वैज्ञानिकों ने सुबह 7:17 बजे पर 440 न्यूटन लिक्विड एपोगी मोटर (एलएएम) और आठ अन्य छोटे थ्रस्टर्स को 24 मिनट के लिए चालू (फायर) किया, जिससे 1350 किलो वजनी मार्स आर्बिटर मिशन (एमओएम) यान की गति 22.1 किमी प्रति सेकेंड से घटकर 4.4 किमी प्रति सेकेंड आ जाए और लाल ग्रह का गुरुत्वाकर्षण उसे अपनी ओर खींच ले। और आखिर में करीब 8 बजे वैज्ञानिकों को यान को सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित करने में कामयाबी मिल गई। इसी के साथ इसरो और भारत ने एक नया इतिहास रच दिया, जिसका लोहा दुनिया भी मान गई। मंगल यान से धरती तक संकेतों के पहुंचने में करीब 12 मिनट 28 सेकेंड का समय लगा। ये संकेत कैनबरा और गोल्डस्टोन स्थित नासा के डीप स्पेस नेटवर्क स्टेशन ने ग्रहण किए और आंकड़े रियल टाइम पर बंगलूरू स्थित इसरो स्टेशन को भेजे।
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