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समंदर के किनारे रशीद नामक गड़रिया भेड़ें चराया करता था। एक दिन वह भेड़ें चरा रहा था। साथ-साथ समंदर का सुहाना दृश्य भी देख रहा था। उसके मन में विचार आया कि समंदर की जिंदगी भी कितनी शानदार है। उसके मन में समंदर की यात्रा करने की इच्छा पैदा हुई। ऐसे में एक दिन एक घुड़सवार उधर से निकला। उसकी भेंट रशीद से हुई। रशीद ने घुड़सवार को अपनी इच्छा बताई। घुड़सवार ने उसे मदद करने का वादा किया। घुड़सवार ने उसे बताया कि वह समंदर में किश्ती चलाता है। ये सुनकर रशीद बहुत खुश हुआ। उसने घुड़सवार को अपने साथ समंदर के सफर पर ले जाने की प्रार्थना की। घुड़सवार राजी हो गया। उसने उसे अगले दिन समंदर के किनारे बुलवाया। रशीद उस दिन अपनी भेड़ों को हांककर मंडी में बेचने ले गया। भेड़ों के व्यापारी को जब मालूम हुआ कि रशीद भेड़ क्यों बेच रहा है, तो वह खूब हंसा। हंसी-हंसी में उसने रशीद से कहा, ′इससे पहले मैं तुम्हारी भेड़ें खरीदूं, तुम्हें बताना चाहता हूं कि जब तक किसी काम के बारे में पूरी जानकारी न हो, उस समय तक उस काम में हाथ नहीं डालना चाहिए।’ भेड़ों के व्यापारी ने रशीद को भेड़ें बेचने से बहुत रोका, मगर वह किसी तरह न माना। आखिरकार भेड़ें बेचकर, रुपया लेकर रशीद किश्ती खरीदने एक नाविक के पास पहुंचा। उसने भी वही बातें की, जो भेड़ों के व्यापारी ने की थीं, लेकिन रशीद नहीं माना। किश्ती खरीद ली।
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दूसरे दिन सुबह-ही-सुबह रशीद ने किश्ती में व्यापार करने के लिए खजूर लादी और पहुंच गया समंदर के किनारे। घुड़सवार कहीं नजर नहीं आया। वह बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने खुद किश्ती चलाकर अपनी समंदरी यात्रा शुरू की। वह समंदर में किश्ती चलाता जाता था और साथ ही कहता जाता, ′वाह! समंदर की जिंदगी भी कैसी शानदार है।′ कुछ दिन ठीक गुजर गए, लेकिन एक दिन उसकी सारी खुशियां खत्म हो गईं। लू चल पड़ी। लू के थपेड़ों ने उसका चेहरा झुलसाना शुरू कर दिया। फिर मौसम बदलने के कारण धूप में तेजी आ गई। हवा भी बिल्कुल बंद हो गई। वह पसीने से बुरी तरह नहाने लगा। घबराकर बुदबुदाया, ‘ऐ खुदा! समंदर की जिंदगी भी कैसी खराब जिंदगी है। अगर ठंडी हवा न चली तो इस गर्मी में मेरा दम घुटकर रह जाएगा।′ एक दिन अचानक समंदर में जबरदस्त तूफान आ गया। उसकी छोटी-सी किश्ती समंदर के थपेड़े खाती लहरों से बुरी तरह हिचकोले खाने लगी। तूफानी लहरें उसे उठा-उठाकर तिनके की तरह फेंक रही थीं। ऐसा नजर आने लगा था कि जैसे किश्ती अब डूब जाएगी, इससे पहले किश्ती डूब जाती, भाग्यवश एक समुद्री जहाज इधर आ निकला। उसे देखकर वह एकदम चिल्लाया ′मदद...मदद...।′ जहाज के कप्तान ने उसे मुसीबत में देख जहाज रोक लिया। उसे किश्ती से जहाज में सवार कर लिया। जहाज में आकर उसके होश ठिकाने आ गए।
कुछ दिनों के बाद जब गड़रिया अपने देश वापस पहुंचा, उसके पास फूटी कौड़ी भी न थी। वह पैसे-पैसे के लिए तंग हो गया था। वह विवश होकर भेड़ के उस व्यापारी के पास गया, जिसके पास उसने अपनी भेड़ें गिरवी रखीं थीं। उसने प्रार्थना की कि वह उसे अपने यहां नौकर रख ले। नौकरी की कमाई से वो जो पैसा कमाएगा, उससे वह उधार उतारकर अपनी भेड़ें वापस ले लेगा। व्यापारी ने उससे पूछा, ′तुम समंदर की यात्रा से इतनी जल्दी वापस क्यों आ गए? क्या समंदर की जिंदगी शांति भरी नहीं थी?′ इसके जवाब में रशीद ने अपनी सारी दुख भरी कहानी कह सुनाई और कहा, ′इस यात्रा में मेरी सारी पूंजी खत्म हो गई। स्वयं मरते-मरते बचा, लेकिन इससे मैंने बहुत बड़ी सीख पाई है कि हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती। जब तक किसी काम के बारे में पूरी जानकारी न हो, उसमें हाथ डालना मूर्खता है।′

भेड़ों के व्यापारी ने रशीद को अपने यहां नौकर रख लिया। धीरे-धीरे उसने व्यापारी का उधार उतार दिया। अपनी भेड़ें वापस ले लीं। वह फिर भेड़ें चराने लगा। तो बच्चों, तुम समझ गए ना कि उत्साह और जल्दबाजी में कोई काम नहीं करना चाहिए, वरना नुकसान ही होता है।
 
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