
पेशेवर लोग अपना काम इसलिए आसानी से कर जाते हैं, क्योंकि उनको अपने काम में पूरी महारत हासिल होती है। बहुत से लोग काम सिर्फ तरक्की को दिमाग में रखकर करते हैं, लेकिन जिनकी आदत अच्छा काम करने की बन जाती है, तरक्की के असली हकदार वही होते हैं। किसी चीज की आदत डाल लेना खेती करने के समान है। जिस तरह खेती की फसल प्राप्त करने में समय लगता है, ठीक उसी तरह जीतने के लिए बेहतर काम करने की आदत डालने में भी समय लगता ही है।
हम सभी सफल जीवन जीने के लिए पैदा हुए हैं, मगर अपनी आदतों और प्रतिकूल माहौल के कारण हम सफलता से दूर होते जाते हैं। हमारा जन्म जीत के लिए हुआ है, पर हम इस ढंग से ढल गए हैं कि हारना सीख लिया है। हम अक्सर ऐसी बातें सुनते हैं- उसकी किस्मत अच्छी है, मिट्टी छूता है तो भी सोना बन जाती है। वास्तव में ऐसा नहीं होता। किसी को सफलता उसकी मेहनत से ही मिलती है। अगर आप जांचें-परखें तो पाएंगे कि जाने-अनजाने सफल लोग अपने हर काम में सही कदम उठा रहे हैं, जबकि हारने वाले बार-बार एक ही गलती को दोहरा रहे हैं। याद रखें, प्रैक्टिस से पूर्णता नहीं आती, बल्कि परफेक्ट प्रैक्टिस से पूर्णता आती है। कुछ लोग अपनी ही गलतियों की प्रैक्टिस करते रहते हैं और उसी में पूर्णता हासिल कर लेते हैं। वे गलतियां करने में माहिर हो जाते हैं और गलतियां खुद-ब-खुद उनकी होने लगती हैं। ऐसी आदत न डालें।
संकट के समय में भी साहस दिखाना, लालच के सामने आत्मसंयम दिखाना, दुख की घड़ी आने पर भी खुश रहना, बाधाओं में भी अवसर तलाशना आदि कुछ ऐसे गुण हैं, जो सिर्फ संयोग या किस्मत से नहीं आते, बल्कि शारीरिक और मानसिक रूप से लगातार किए गए परिश्रण का ही परिणाम होते हैं। कठिनाई के सामने आने पर हमारा व्यवहार हमारी प्रैक्टिस के अनुसार ही सकारात्मक या नकारात्मक होगा।
हम छोटे-छोटे कामों को करने में भी कायरता और बेईमानी दिखाते हैं कि जब बड़े काम करने होंगे तो उन्हें सही ढंग से करेंगे। मगर ऐसा नहीं हो पाता और बड़े कामों में भी हमें असफलता ही हाथ लगती है। इसकी वजह यह है कि छोटे कामों को करने की भी हमारी प्रैक्टिस नहीं होती। ऐसे में अचानक बड़ा काम करने पर भी असफलता ही हाथ लगती है। सच है, हमारे विचार काम की तरफ ले जाते हैं, काम से आदतें बनती हैं, आदतों से चरित्र बनता है और चरित्र से ही हमारा भविष्य निर्धारित होता है। इसलिए जीतने की आदत डाल लें।