महान्यायवादी सरकार का मुख्य विधि अधिकारी होता है। वह भारत सरकार को कानूनी मामले में सलाह देता है और कानूनी स्वरूप के ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करता है जो उसे सौंपे जाएं। देश में केवल महान्यायवादी को ही भारत के सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकारहै। साथ ही, उसे संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में बोलने और उनकी कार्यवाहियों में भाग लेने का भी अधिकार प्राप्त होता है।
अटॉर्नी जनरल की भूमिका (Roll of Attorney General in India): 1950 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में पहले महान्यायवादी एमसी सीतलवाड थे, जिन्होंने इस पद पर 13 साल (अब तक सर्वाधिक) सेवाएं दी थीं। संविधान के अनुच्छेद 76 (1) के अनुसार, राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के योग्य किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त कर सकता है। राष्ट्रपति जब तक चाहे, महान्यायवादी अपने पद पर बना रह सकता है। लेकिन चूंकि उसकी नियुक्ति सरकार की सलाह पर की जाती है, इसलिए यह परिपाटी बन गई है कि सरकार बदलने के साथ ही वह अपना इस्तीफा पेश कर देता है।
हालांकि वह संसद में वोट नहीं दे सकता, क्योंकि न तो वह लोकसभा का पूर्णकालिक अधिकारी होता है और न ही मंत्रिमंडल का सदस्य होता है (ब्रिटेन में भी ऐसा ही है)। यह दीगर बात है कि इस पद पर होते हुए भी उसे निजी प्रैक्टिस करने से रोका नहीं जाता। हां, यह अपवाद जरूर है कि भारत सरकार के विरुद्ध वह न तो सलाह दे सकता है और न ही उसके विरुद्ध वकालत कर सकता है।
महान्यायवादी की मदद के लिए एक सॉलिसिटर जनरल और चार एडिशनल सॉलिसिटर जनरल भी होते हैं। किसी मामले में जरूरत पड़ने पर अटॉर्नी जनरल को कानून मंत्रालय की ओर से संबंधित दस्तावेज मुहैया कराए जाते हैं।
सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General of India): सॉलिसिटर जनरल केंद्र सरकार का दूसरा सबसे बड़ा विधि अधिकारी होता है। वह विभिन्न मामलों में अदालत में केंद्र सरकार का पक्ष रखता है। देश के पहले सॉलिसिटर जनरल सीके दफ्तरी थे।
अटॉर्नी जनरल की भूमिका (Roll of Attorney General in India): 1950 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में पहले महान्यायवादी एमसी सीतलवाड थे, जिन्होंने इस पद पर 13 साल (अब तक सर्वाधिक) सेवाएं दी थीं। संविधान के अनुच्छेद 76 (1) के अनुसार, राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के योग्य किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त कर सकता है। राष्ट्रपति जब तक चाहे, महान्यायवादी अपने पद पर बना रह सकता है। लेकिन चूंकि उसकी नियुक्ति सरकार की सलाह पर की जाती है, इसलिए यह परिपाटी बन गई है कि सरकार बदलने के साथ ही वह अपना इस्तीफा पेश कर देता है।
हालांकि वह संसद में वोट नहीं दे सकता, क्योंकि न तो वह लोकसभा का पूर्णकालिक अधिकारी होता है और न ही मंत्रिमंडल का सदस्य होता है (ब्रिटेन में भी ऐसा ही है)। यह दीगर बात है कि इस पद पर होते हुए भी उसे निजी प्रैक्टिस करने से रोका नहीं जाता। हां, यह अपवाद जरूर है कि भारत सरकार के विरुद्ध वह न तो सलाह दे सकता है और न ही उसके विरुद्ध वकालत कर सकता है।
महान्यायवादी की मदद के लिए एक सॉलिसिटर जनरल और चार एडिशनल सॉलिसिटर जनरल भी होते हैं। किसी मामले में जरूरत पड़ने पर अटॉर्नी जनरल को कानून मंत्रालय की ओर से संबंधित दस्तावेज मुहैया कराए जाते हैं।
सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General of India): सॉलिसिटर जनरल केंद्र सरकार का दूसरा सबसे बड़ा विधि अधिकारी होता है। वह विभिन्न मामलों में अदालत में केंद्र सरकार का पक्ष रखता है। देश के पहले सॉलिसिटर जनरल सीके दफ्तरी थे।