किसी भी शेयर में जब बड़ी हलचल होती है, बड़ा उतार-चढ़ाव आता है, तब दो प्रकार के लिए लोग सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं। पहला होता है, शिकार, दूसरा शिकारी। सुनने में शायद आपको अजीब लगे लेकिन बात बिलकुल सच है। जंगल की भाषा शेयर बाजार पर भी किसी हद तक लागू होती है। शिकारी का अर्थ है- बड़े-बड़े प्रोफेशनल ट्रेडर, हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल्स, म्यूचुअल फंड हाउस, एफआईआई और डीआईआई जैसे बड़े-बड़े दिग्गज। शेयर मार्केट को इधर का उधर करने वाले ऑपरेटर्स वगैरह। इस तबके के लिए शेयर बाजार एक दुधारू गाय है जो कभी कभार लतार भी मार देती है। लेकिन वे इससे विचलित नहीं होते हैं। पूरी प्रतिबद्धता के साथ ट्रेडिंग करते हैं। सारे दांव-पेंच आजमाते हैं। दूसरी तरफ शिकार के अंतर्गत आते हैं- लाखों छोटे निवेशक और ट्रेडर। जो अपनी कुछ हजार या ज्यादा से ज्यादा कुछ लाख रुपए की पूंजी लेकर बाजार में उतरते हैं। ये लोग सोचते हैं कि अगर पैसा बैंक में पड़ा रहेगा तो एफडी पर दस फीसदी से ज्यादा ब्याज नहीं मिलेगा लेकिन शेयर बाजार में पैसा लगाया तो साल-भर में 20-25 फीसदी तो कमा ही सकते हैं। निराशा तब होती है जब मुनाफा होने की जगह मूलधन में भी सेंध लग जाती है। यानी जिस भाव में खरीदा था, शेयर की कीमत उससे भी नीचे चली जाती है। तब वे सोचते हैं कि शेयर मार्केट में बेकार घुसे, इससे तो अच्छा था कि बैंक में ही पैसा पड़ा रहता। कुछ ब्याज तो मिलता, मूलधन में बट्टा तो नहीं लगता। इन दोनों वगरें में सबसे बड़ा अंतर यह है कि शिकार वर्ग..शिकारी वर्ग को ही टारगेट बनाता है। शिकारी ट्रेडर आम तौर पर मुनाफा कूटते हैं और शिकार वाले अक्सर रोते नजर आते हैं।
रिटेल ट्रेडिंग में सतर्क रहने के सूत्र
1. किसी भी ट्रेड में एक का फायदा दूसरे का नुकसान होता है, जिसे फायदा वह शिकारी, जिसका नुकसान वह शिकार
2. फायदे में वही रहता है जो ट्रेडिंग स्टाइल को लगातार विकसित करता रहता है
3. सिर्फ मुनाफे के बारे में सोचने से घाटा
4. किसी भी ट्रेड को फाइनल करते समय सबसे पहले नुकसान का हिसाब कर लें
5. एवरेजिंग करना हमेशा एक अच्छा विकल्प नहीं होता है
एक साथ दो लोग खुश नहीं सकते: शेयर बाजार का एक कड़वा सच है कि किसी भी ट्रेड में एक साथ दो लोग खुश नहीं हो सकते हैं। अगर आपने किसी शेयर को ये सोच कर खरीदा कि वो चढ़ेगा तो बेचने वाले ने भी यह सोच कर बेचा होगा कि ये अब गिरेगा। जाहिर सी बात है कि क्रेता और विक्रेता दोनों में से एक का अनुमान ही सही निकलेगा। और इस तरह एक का घाटा ही दूसरे का मुनाफा साबित होगा। जो ट्रेडर ज्यादातर मुनाफे में रहते हैं, वे शिकारी वर्ग में शामिल हो जाते हैं और बाकी शिकार वर्ग में। यहां ज्यादातर शब्द पर गौर कीजिए क्योंकि कोई भी ट्रेडर हर सौदे में मुनाफा नहीं कमा सकता है। शेयर मार्केट की अनिश्चितता इतनी ज्यादा होती है कि नफा के साथ नुकसान लगा ही रहता है।
खुद की ट्रेडिंग स्टाइल पहचानें: इतना पढ़ चुकने के बाद आपने मन ही मन अपना मूल्यांकन कर लिया होगा कि आप किस वर्ग के ट्रेडर हैं? शिकार या शिकारी? साफ बात है कि शिकारियों का मुनाफा शिकारों की जेब से ही निकलता है। तो ऐसे में हर एक ट्रेडर यही चाहेगा कि वह अगर शिकार वर्ग में हैं तो किसी तरह शिकारी वर्ग में एंट्री करे। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि आप इन दोनों के अंतर को गहराई से समझें। मूल अंतर है- सोच और संसाधन का। बड़े और सफल ट्रेडर का शेयर बाजार के प्रति एप्रोच आम ट्रेडर के मुकाबले ज्यादा विकसित होता है। उनके पास बड़ी पूंजी की ताकत होती है। वे बड़ा घाटा सहने की शक्ति रखते हैं। लेकिन इन सबसे अहम बात यह है कि वह ट्रेडिंग को लेकर एक परिपक्व रवैया अपनाते हैं। वे जानते हैं कि कब कौन सा दांव उल्टा पड़ गया है। कौन सा सौदा गलत दिशा में चला गया है? वे वक्त गंवाए बिना उससे निकल लेते हैं। स्टॉप लॉस लगने से खुशी उन्हें भी नहीं होती है लेकिन वे इसे ट्रेडिंग में जोखिम का अनिवार्य हिस्सा मान कर चलते हैं। इसके विपरीत खुदरा निवेशकों में एक आम प्रवृत्ति होती है कि अगर कोई सौदा उल्टी दिशा में चला गया तो वे स्टॉप लॉस लगाने की जगह एवरेजिंग शुरू कर देते हैं। एवरेजिंग यानी लागत को कम करना। आपने अगर किसी कंपनी के 50 शेयर 80 रुपए के भाव से खरीदे और उसकी कीमत गिर कर 76 रुपए पर पहुंच गई। आपको लगा कि कीमत अब और नीचे नहीं जाएगी, इसलिए आपने 25 शेयर 76 रु. के भाव पर खरीद लिए। अब आपके पास 75 शेयर हो गए, जिनकी एवरेज यानी औसत कीमत 78.67 रुपए हो गई। ट्रेडर एवरेजिंग करते समय यह नहीं सोचा कि अगर यह और गिर कर 75 या 73 रुपए पर चला गया तो वह क्या करेगा। किस लेवल तक खरीदेगा, कितनी मात्रा में खरीदेगा। वह कितने वक्त तक शेयर को होल्ड करके रख सकता है। अगर पूरा चक्र उसके आकलन के विपरीत चला गया तब वह कितने बड़े घाटे में फंस जाएगा। यहीं पर नौसिखिए और खिलाड़ी ट्रेडर, शिकारी और शिकार ट्रेडर के रास्ते अलग हो जाते हैं। तो याद रखिए ट्रेडिंग स्टाइल और एप्रोच फर्क ही मुख्यत: तय करता है कि आप शेयर बाजार में पिटने गए हैं या पीटने?
रिटेल ट्रेडिंग में सतर्क रहने के सूत्र
1. किसी भी ट्रेड में एक का फायदा दूसरे का नुकसान होता है, जिसे फायदा वह शिकारी, जिसका नुकसान वह शिकार
2. फायदे में वही रहता है जो ट्रेडिंग स्टाइल को लगातार विकसित करता रहता है
3. सिर्फ मुनाफे के बारे में सोचने से घाटा
4. किसी भी ट्रेड को फाइनल करते समय सबसे पहले नुकसान का हिसाब कर लें
5. एवरेजिंग करना हमेशा एक अच्छा विकल्प नहीं होता है
एक साथ दो लोग खुश नहीं सकते: शेयर बाजार का एक कड़वा सच है कि किसी भी ट्रेड में एक साथ दो लोग खुश नहीं हो सकते हैं। अगर आपने किसी शेयर को ये सोच कर खरीदा कि वो चढ़ेगा तो बेचने वाले ने भी यह सोच कर बेचा होगा कि ये अब गिरेगा। जाहिर सी बात है कि क्रेता और विक्रेता दोनों में से एक का अनुमान ही सही निकलेगा। और इस तरह एक का घाटा ही दूसरे का मुनाफा साबित होगा। जो ट्रेडर ज्यादातर मुनाफे में रहते हैं, वे शिकारी वर्ग में शामिल हो जाते हैं और बाकी शिकार वर्ग में। यहां ज्यादातर शब्द पर गौर कीजिए क्योंकि कोई भी ट्रेडर हर सौदे में मुनाफा नहीं कमा सकता है। शेयर मार्केट की अनिश्चितता इतनी ज्यादा होती है कि नफा के साथ नुकसान लगा ही रहता है।
खुद की ट्रेडिंग स्टाइल पहचानें: इतना पढ़ चुकने के बाद आपने मन ही मन अपना मूल्यांकन कर लिया होगा कि आप किस वर्ग के ट्रेडर हैं? शिकार या शिकारी? साफ बात है कि शिकारियों का मुनाफा शिकारों की जेब से ही निकलता है। तो ऐसे में हर एक ट्रेडर यही चाहेगा कि वह अगर शिकार वर्ग में हैं तो किसी तरह शिकारी वर्ग में एंट्री करे। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि आप इन दोनों के अंतर को गहराई से समझें। मूल अंतर है- सोच और संसाधन का। बड़े और सफल ट्रेडर का शेयर बाजार के प्रति एप्रोच आम ट्रेडर के मुकाबले ज्यादा विकसित होता है। उनके पास बड़ी पूंजी की ताकत होती है। वे बड़ा घाटा सहने की शक्ति रखते हैं। लेकिन इन सबसे अहम बात यह है कि वह ट्रेडिंग को लेकर एक परिपक्व रवैया अपनाते हैं। वे जानते हैं कि कब कौन सा दांव उल्टा पड़ गया है। कौन सा सौदा गलत दिशा में चला गया है? वे वक्त गंवाए बिना उससे निकल लेते हैं। स्टॉप लॉस लगने से खुशी उन्हें भी नहीं होती है लेकिन वे इसे ट्रेडिंग में जोखिम का अनिवार्य हिस्सा मान कर चलते हैं। इसके विपरीत खुदरा निवेशकों में एक आम प्रवृत्ति होती है कि अगर कोई सौदा उल्टी दिशा में चला गया तो वे स्टॉप लॉस लगाने की जगह एवरेजिंग शुरू कर देते हैं। एवरेजिंग यानी लागत को कम करना। आपने अगर किसी कंपनी के 50 शेयर 80 रुपए के भाव से खरीदे और उसकी कीमत गिर कर 76 रुपए पर पहुंच गई। आपको लगा कि कीमत अब और नीचे नहीं जाएगी, इसलिए आपने 25 शेयर 76 रु. के भाव पर खरीद लिए। अब आपके पास 75 शेयर हो गए, जिनकी एवरेज यानी औसत कीमत 78.67 रुपए हो गई। ट्रेडर एवरेजिंग करते समय यह नहीं सोचा कि अगर यह और गिर कर 75 या 73 रुपए पर चला गया तो वह क्या करेगा। किस लेवल तक खरीदेगा, कितनी मात्रा में खरीदेगा। वह कितने वक्त तक शेयर को होल्ड करके रख सकता है। अगर पूरा चक्र उसके आकलन के विपरीत चला गया तब वह कितने बड़े घाटे में फंस जाएगा। यहीं पर नौसिखिए और खिलाड़ी ट्रेडर, शिकारी और शिकार ट्रेडर के रास्ते अलग हो जाते हैं। तो याद रखिए ट्रेडिंग स्टाइल और एप्रोच फर्क ही मुख्यत: तय करता है कि आप शेयर बाजार में पिटने गए हैं या पीटने?