हमारे देश में एकल नागरिकता का प्रावधान है। संविधान के भाग-दो और पांच अनुच्छेदों में इस संदर्भ में जानकारी दी गई है। इसके अलावा अनुच्छेद 11 के तहत संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह नागरिकता के संबंध में कानून बना सकता है। इसी अधिकार के तहत संसद ने नागरिकता अधिनियम, 1955 बनाया, जिसमें अब तक कई संशोधन हो चुके हैं। इन्हीं संशोधनों में एक की घोषणा अगस्त, 2005 में की गई, जिसमें ओवरसीज नागरिकता का प्रावधान किया गया। इस योजना की विधिवत शुरुआत जनवरी, 2006 में हैदराबाद में हुए प्रवासी भारतीय दिवस समारोह में की गई। यह नागरिकता उन प्रवासियों के लिए है, जो 26 जनवरी, 1950 के बाद प्रवासी बने हैं। इसका उद्देश्य है कि प्रवासी अधिक से अधिक संख्या में देश में आएं और यहां की अर्थव्यवस्था को मजबूत करें।
सीमाएं भी हैं (limits of Overseas Citizenship): इस नागरिकता प्राप्त व्यक्ति के लिए सबसे बड़ी राहत की बात यही होती है कि उसे देश में आने के लिए किसी वीजा की जरूरत नहीं है। वह देश में बिना रोक-टोक भ्रमण कर सकता है और उसे स्थानीय थाने में पंजीयन कराने की भी जरूरत नहीं होती। यह वीजा आजीवन मान्य होता है। पर इन सबके अतिरिक्त इसकी कुछ सीमाएं भी हैं। जिस प्रवासी को ओवरसीज नागरिकता मिल जाती है, तो इसका मतलब यह नहीं होता कि उसे भारत की नियमित नागरिकता हासिल हो गई हो। ओवरसीज का मतलब दोहरी नागरिकता प्राप्त करना नहीं है। इस नागरिकता को पाने वाला प्रवासी न तो भारतीय पासपोर्ट हासिल कर सकता है और न ही उसे वोट डालने का अधिकार मिलता है। इसके अतिरिक्त वह भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के जज जैसा संवैधानिक पद भी नहीं प्राप्त कर सकता है और न ही संसद अथवा विधानमंडल का सदस्य बन सकता है। वह भारत में खेती के लिए जमीन भी नहीं खरीद सकता, पर विरासत में मिली संपत्तियों का अधिकार जरूर प्राप्त कर सकता है।
कौन है उपयुक्त : 26 जनवरी, 1950 के बाद जो प्रवासी बने हैं, वह इस नागरिकता के लिए मान्य हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्होंने दूसरे देशों की नागरिकता भी ले रखी है। पर इतना जरूर है कि उन्हें तभी ओवरसीज सिटिजनशिप दी जाती है, जब उनका देश स्थानीय कानूनों के तहत दोहरी नागरिकता को कुछ मायनों में स्वीकार करता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़कर अन्य सभी देशों के प्रवासी भारतीयों को इसमें शामिल किया गया है। दिलचस्प है कि जब किसी प्रवासी को ओवरसीज सिटिजनशिप दी जाती है, तो उसके पासपोर्ट पर यू वीजा स्टीकर लगा दिया जाता है।
सीमाएं भी हैं (limits of Overseas Citizenship): इस नागरिकता प्राप्त व्यक्ति के लिए सबसे बड़ी राहत की बात यही होती है कि उसे देश में आने के लिए किसी वीजा की जरूरत नहीं है। वह देश में बिना रोक-टोक भ्रमण कर सकता है और उसे स्थानीय थाने में पंजीयन कराने की भी जरूरत नहीं होती। यह वीजा आजीवन मान्य होता है। पर इन सबके अतिरिक्त इसकी कुछ सीमाएं भी हैं। जिस प्रवासी को ओवरसीज नागरिकता मिल जाती है, तो इसका मतलब यह नहीं होता कि उसे भारत की नियमित नागरिकता हासिल हो गई हो। ओवरसीज का मतलब दोहरी नागरिकता प्राप्त करना नहीं है। इस नागरिकता को पाने वाला प्रवासी न तो भारतीय पासपोर्ट हासिल कर सकता है और न ही उसे वोट डालने का अधिकार मिलता है। इसके अतिरिक्त वह भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के जज जैसा संवैधानिक पद भी नहीं प्राप्त कर सकता है और न ही संसद अथवा विधानमंडल का सदस्य बन सकता है। वह भारत में खेती के लिए जमीन भी नहीं खरीद सकता, पर विरासत में मिली संपत्तियों का अधिकार जरूर प्राप्त कर सकता है।
कौन है उपयुक्त : 26 जनवरी, 1950 के बाद जो प्रवासी बने हैं, वह इस नागरिकता के लिए मान्य हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्होंने दूसरे देशों की नागरिकता भी ले रखी है। पर इतना जरूर है कि उन्हें तभी ओवरसीज सिटिजनशिप दी जाती है, जब उनका देश स्थानीय कानूनों के तहत दोहरी नागरिकता को कुछ मायनों में स्वीकार करता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़कर अन्य सभी देशों के प्रवासी भारतीयों को इसमें शामिल किया गया है। दिलचस्प है कि जब किसी प्रवासी को ओवरसीज सिटिजनशिप दी जाती है, तो उसके पासपोर्ट पर यू वीजा स्टीकर लगा दिया जाता है।