आपने जीडीपी का नाम तो जरूर सुना होगा लेकिन होती है क्या जीडीपी व किसी देश को की इकॉनमी को कैसे बतलाती है। जीडीपी या पीपीपी अर्थशास्त्र से संबंधित प्रश्नों में एक सवाल जीडीपी (Gross domestic product) से जरूर जुड़ा होता है। एक वर्ष में उत्पादित हर तरह की वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के संयुक्त बाजार मूल्य को जीडीपी कहा जाता है। चूंकि इससे बाजार के विकास की गति पता चलती है, इसलिए इसे अर्थव्यवस्था का सूचक भी कहा जाता है। हर वित्तीय वर्ष में देश के लिए जो विकास दर निर्धारित की जाती है, वह जीडीपी में होने वाली बढ़ोतरी होती है। मसलन, कार में लगे टायरों की लागत कुल उत्पादन में उस वक्त जोड़ी जाती है, जब उनका निर्माण होता है। उसके बाद कार के मूल्य के रूप में दोबारा भी उन्हें जोड़ा जाता है, पर वास्तव में सिर्फ मूल्य में वृद्धि जोड़ी जाती है। यानी तैयार माल के मूल्य से कच्चे माल के मूल्य को घटाया जाता है। फिर जो मूल्य हासिल होता है, उसे जीडीपी से जोड़ दिया जाता है। किसी भी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन हर वर्ष होता है और निर्यात के लिए उत्पादन कम ही होता है। इस तरह जीडीपी से उस देश की जीवनशैली का भी पता चलता है।
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सकल राष्ट्रीय आय(Gross National Income): वैश्वीकरण की वजह से लोगों की आय किसी एक देश की सीमा से बंधी नहीं रह गई है। लोग अब बाहर जाकर भी कमाने लगे हैं। इसलिए राष्ट्रीय आय के लिए सकल राष्ट्रीय उत्पाद यानी जीएनपी को भी जोड़ा जाता है। इसमें उस देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों को भी जोड़ा जाता है, भले ही उस वस्तु का उत्पादन या वह सेवा देश के भीतर दी जा रही हो या देश के बाहर। जीडीपी की गणना करते समय महंगाई दर को भी देखा जाता है। देश की अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को संतुलित करने के लिए कई मापदंड भी बनाए गए हैं। महंगाई के प्रभाव को कम करने के लिए जीडीपी डिफ्लेटर भी जोड़ा जाता है। यह ऐसा मानक होता है, जो सभी घरेलू उत्पादों और सेवाओं के मूल्य का स्तर तय करता है। इसका उपयोग एक निश्चित अवधि में जीडीपी में वास्तविक वृद्धि जोड़ने के लिए किया जाता है। इसमें किसी खास वर्ष को आधार वर्ष माना जाता है।
आधार वर्ष (Base Year): देशों की बदलती आर्थिक स्थिति के अनुसार आधार वर्ष में समय-समय पर परिवर्तन होता है, ताकि हर तरह की आर्थिक गतिविधियों को जीडीपी में जोड़ा जा सके। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीडीपी के तुलनात्मक आंकड़े जुटाने के लिए यह सभी सरकारों के लिए अनिवार्य है कि वह राष्ट्रीय खाता व्यवस्था 1993 का पालन करें। संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संगठनों के आयोग, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन और विश्व बैंक मिलकर इसे जारी करते हैं।
जीडीपी का बेहतर सूचक कार्यशक्ति समता मूल्य (पीपीपी Purchasing Power Parity) होता है। बाजार विनिमय दर मुद्राओं की दैनिक मांग और आपूर्ति से तय होती है, जो मुख्य रूप से वस्तुओं के वैश्विक कारोबार से तय होती है, जबकि कई वस्तुओं का वैश्विक कारोबार नहीं होता है। जिन वस्तुओं का कारोबार वैश्विक स्तर पर नहीं होता, उनका मूल्य विकासशील देशों में तुलनात्मक रूप से कम होता है। ऐसे में विनिमय दर पर जीडीपी का डॉलर में परिवर्तन ऐसे देशों की जीडीपी को कमतर दिखाता है। पीपीपी के अंतर्गत समान मात्रा में वस्तुओं के लिए दो देशों में चुकाए जाने वाले मूल्य से विनिमय दर तय होती है। विश्व में भारतीय अर्थव्यवस्था का स्थान 12वां है और यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था का महज 10 फीसदी है।
जीडीपी से किसी देश की आर्थिक गति का पता चलता है। यह ऐसा सूचक है, जो वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन के साथ-साथ उस देश की आर्थिक विकास दर की जानकारी भी देता है।
ऐसे जान सकते हैं जीडीपी (How to Know the GDP): किसी देश की अर्थव्यवस्था की सच्ची तस्वीर पेश करता है, जीडीपी। जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद को तीन विधियों से जाना जा सकता है- उत्पाद के माध्यम से, आय के माध्यम से और व्यय के माध्यम से। दरअसल हर वित्तीय वर्ष में सरकार देश के लिए जो विकास दर निर्धारित करती है, उसका आकलन जीडीपी के आधार पर ही किया जाता है। इसलिए इसका संबंध हमारी जीवनशैली से भी होता है। जीडीपी की गणना करते समय महंगाई दर को भी देखा जाता है।
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सकल राष्ट्रीय आय(Gross National Income): वैश्वीकरण की वजह से लोगों की आय किसी एक देश की सीमा से बंधी नहीं रह गई है। लोग अब बाहर जाकर भी कमाने लगे हैं। इसलिए राष्ट्रीय आय के लिए सकल राष्ट्रीय उत्पाद यानी जीएनपी को भी जोड़ा जाता है। इसमें उस देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों को भी जोड़ा जाता है, भले ही उस वस्तु का उत्पादन या वह सेवा देश के भीतर दी जा रही हो या देश के बाहर। जीडीपी की गणना करते समय महंगाई दर को भी देखा जाता है। देश की अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को संतुलित करने के लिए कई मापदंड भी बनाए गए हैं। महंगाई के प्रभाव को कम करने के लिए जीडीपी डिफ्लेटर भी जोड़ा जाता है। यह ऐसा मानक होता है, जो सभी घरेलू उत्पादों और सेवाओं के मूल्य का स्तर तय करता है। इसका उपयोग एक निश्चित अवधि में जीडीपी में वास्तविक वृद्धि जोड़ने के लिए किया जाता है। इसमें किसी खास वर्ष को आधार वर्ष माना जाता है।
आधार वर्ष (Base Year): देशों की बदलती आर्थिक स्थिति के अनुसार आधार वर्ष में समय-समय पर परिवर्तन होता है, ताकि हर तरह की आर्थिक गतिविधियों को जीडीपी में जोड़ा जा सके। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीडीपी के तुलनात्मक आंकड़े जुटाने के लिए यह सभी सरकारों के लिए अनिवार्य है कि वह राष्ट्रीय खाता व्यवस्था 1993 का पालन करें। संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संगठनों के आयोग, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन और विश्व बैंक मिलकर इसे जारी करते हैं।
जीडीपी का बेहतर सूचक कार्यशक्ति समता मूल्य (पीपीपी Purchasing Power Parity) होता है। बाजार विनिमय दर मुद्राओं की दैनिक मांग और आपूर्ति से तय होती है, जो मुख्य रूप से वस्तुओं के वैश्विक कारोबार से तय होती है, जबकि कई वस्तुओं का वैश्विक कारोबार नहीं होता है। जिन वस्तुओं का कारोबार वैश्विक स्तर पर नहीं होता, उनका मूल्य विकासशील देशों में तुलनात्मक रूप से कम होता है। ऐसे में विनिमय दर पर जीडीपी का डॉलर में परिवर्तन ऐसे देशों की जीडीपी को कमतर दिखाता है। पीपीपी के अंतर्गत समान मात्रा में वस्तुओं के लिए दो देशों में चुकाए जाने वाले मूल्य से विनिमय दर तय होती है। विश्व में भारतीय अर्थव्यवस्था का स्थान 12वां है और यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था का महज 10 फीसदी है।
जीडीपी से किसी देश की आर्थिक गति का पता चलता है। यह ऐसा सूचक है, जो वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन के साथ-साथ उस देश की आर्थिक विकास दर की जानकारी भी देता है।
ऐसे जान सकते हैं जीडीपी (How to Know the GDP): किसी देश की अर्थव्यवस्था की सच्ची तस्वीर पेश करता है, जीडीपी। जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद को तीन विधियों से जाना जा सकता है- उत्पाद के माध्यम से, आय के माध्यम से और व्यय के माध्यम से। दरअसल हर वित्तीय वर्ष में सरकार देश के लिए जो विकास दर निर्धारित करती है, उसका आकलन जीडीपी के आधार पर ही किया जाता है। इसलिए इसका संबंध हमारी जीवनशैली से भी होता है। जीडीपी की गणना करते समय महंगाई दर को भी देखा जाता है।