हमारा
स्वभाव कुछ ऐसा है कि हम नतीजे की परवाह किए बिना अपनी इच्छानुसार कार्यों
को करना चाहते हैं। यह ठीक नहीं है। यदि कोई भी काम अनुशासन के तहत किया
जाए, तभी उसके सुखद परिणाम मिलते हैं। अगर किसी बच्चे को बॉक्स में रखी
सारी चॉकलेट्स खाने की इजाजत दे दी जाए, तो क्या होगा? वह बीमार पड़ जाएगा।
अगर उसी बच्चे को अनुशासित ढंग से एक या दो चॉकलेट रोज खाने की इजाजत दी
जाए, तो उसे लंबे समय तक आनंद मिलेगा। लोगों के मन में यह गलत धारणा बैठी
हुई है कि आजादी का मतलब मनमुताबिक काम करना है। लेकिन आदमी की इच्छाएं सदा
पूरी नहीं हो सकतीं। अनुशासन की बंदिशें हमें नीचे गिराने के बजाय ऊपर
उठाती हैं। इसका यही लाभ है।
एक छोटा बच्चा
अपने पिता के साथ पतंग उड़ा रहा था। उसने पिता से पूछा, "पतंग किस वजह से
ऊपर उड़ रही है?" इस पर पिता ने कहा, "धागे की वजह से।" यह सुनकर बच्चा
बोला, "पर धागा तो पतंग को आगे बढ़ने से रोक रही है।" पिता ने पतंग की डोर
काट दी और वह पतंग पल भर में ही नीचे गिर गई। क्या हमारी जिंदगी की रूपरेखा
भी कुछ ऐसी ही नहीं है? कई बार हमें लगता है कि कुछ चीजें हमें नीचे धकेल
रही हैं, पर वास्तव में वे हमें आगे बढ़ने में, ऊंचा उड़ने में मददगार होती
हैं। अनुशासन हमारी जिंदगी में पतंग के धागे की ही तरह होता है, जिससे हम
नियंत्रित ढंग से आगे बढ़ते हैं।
यह जुमला
हम अक्सर सुनते हैं कि मैं आजाद होना चाहता हूं। यदि आप ट्रेन को पटरी से
उतार दें, तो वह आजाद तो हो जाएगी, पर उसके बाद वह आगे बढ़ेगी कैसे? अगर हर
इंसान खुद का ट्रैफिक कानून बनाने लगे और सड़क पर किसी भी तरफ गाड़ी चलाने
लगे, तो इसे हम आजादी कहेंगे या अव्यवस्था? यह अनुशासन का अभाव है। दरअसल
नियमों का पालन करते हुए अनुशासित जीवन व्यतीत करके ही हम वास्तव में आजादी
हासिल करते हैं। अनुशासन के साथ-साथ अभ्यास व मेहनत की भी जरूरत है। जीवन
के किसी भी हिस्से में अनुशासन के बल पर ही आगे बढ़ा जा सकता है।
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