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अक्सर हम लोग अपनी आलोचना करने वाले व्यक्ति को नापसंद ही करते हैं, जबकि आलोचना करने वाला व्यक्ति हमारी कमजोरियों की ओर इशारा करता है। इसका तात्पर्य यह है कि हमारा आलोचक ही हमारा सच्चा मित्र है। हो सकता है कि हमारी आलोचना कभी सही और कभी गलत ढंग से की जाती हो। ऐसे में गलत आलोचना पर ध्यान न दें, पर सही आलोचना से सबक जरूर लें। दुनिया के महान लोगों की भी आलोचनाएं हुई हैं। सही आलोचना फायदेमंद होती है और इसे एक अच्छी सलाह के रूप में कबूल करना चाहिए। नाजायज आलोचना असल में छिपी हई तारीफ है। कुछ लोग जो खुद सफल नहीं होते और उनके पास खुद की बातचीत का मुद्दा नहीं बचता, तो वे सफल लोगों को निशाना बनाते हैं।
जहां तक गलत आलोचना का सवाल है, तो वह केवल दो कारणों से होती है- पहली अज्ञानता और दूसरी जलन। जब आलोचना जलन की वजह से होती है, तो इसे छिपी हुई तारीफ के रूप में स्वीकार करें। कोई आपकी गलत आलोचना इसलिए कर रहा है, क्योंकि वह आपकी जगह खुद को देखना चाहता है। हालांकि सकारात्मक आलोचना को स्वीकार करना चाहिए। सकारात्मक आलोचना को भी स्वीकार करने की क्षमता न होना कमजोर स्वाभिमान की निशानी है।
आलोचना को स्वीकार करने के लिए अपने खिलाफ कहे गए शब्दों को पॉजीटिव ढंग से लें और इन्हें दरियादिली के साथ स्वीकार करें, न कि मनमुटाव के साथ। अपनी आलोचना का आकलन खुले दिमाग से करें। अगर वह सही लगती हो, तो उसे कबूल करें, उससे सीखें और उस पर अमल करें। ज्यादातर लोगों के साथ समस्या यह है कि वे सही आलोचना स्वीकार करने के बजाय झूठी तारीफ सुनना पसंद करते हैं। जरा सोचिए, इससे क्या फयदा होगा।
आलोचना के अलावा शिकायत भी इसी तरह की समस्या है। कुछ लोग बेवजह की शिकायत करते हैं। अगर गर्मी है, तो बहुत गर्मी है। अगर ठंड है, तो बहुत ठंड है। उनके लिए हर दिन खराब है। जब सबकुछ ठीक-ठाक हो, तो वे शिकायत का कोई और बहाना ढूंढ़ लेते हैं। शिकायत की ऐसी आदत उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाती है, पर कई बार शिकायतें जायज भी होती हैं। आलोचना की तरह ही अगर शिकायतों को भी सकारात्मक ढंग से लिया जाए, तो इससे भी हमें फायदा ही होता है। आलोचना हो या शिकायत, अगर उनसे सीख लेने की कोशिश की जाए, तो इससे आपके व्यक्तित्व में पॉजीटिव चेंज आ सकता है।
 
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