साइंस स्ट्रीम (मैथ्स) के अधिकांश विद्यार्थियों
की पहली पसंद इंजीनियरिंग सेक्टर ही है, जिसके तहत कॅरियर विकल्पों की कोई
कमी नहीं है। आप भी अपनी रुचि के अनुसार किसी तकनीकी विकल्प का चयन कर सकते
हैं...
बारहवीं में साइंस स्ट्रीम
(फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथमेटिक्स) की पढ़ाई करने वाले अधिकांश विद्यार्थी
इंजीनियरिंग के क्षेत्र में ही कॅरियर बनाना चाहते हैं। इंजीनियरिंग सेक्टर
के तहत यदि अवसरों की बात करें तो इसकी सभी ब्रांचेज में अवसर उपलब्ध हैं।
जरूरत इस बात की है कि खुद को इस लायक बनाया जाए कि संबंधित एंट्रेंस
टेस्ट में सफलता मिले। तभी मनचाही ब्रांच और मनचाहे संस्थान में दाखिला
पाया जा सकता है। इंजीनियरिंग की कुछ महत्वपूर्ण शाखाएं हैं-
सिविल इंजीनियरिंग (Civil Engineering): इंजीनियरिंग
की इस शाखा की लोकप्रियता हमेशा से रही है। बिल्डिंग, ब्रिज, रोड आदि से
संबंधित निर्माण में जिस तरह से तेजी आई है, उसके मद्देनजर सिविल
इंजीनियरों की मांग एक बार फिर से बढ़ी है। इस क्षेत्र के जानकार
आर्किटेक्टचर संबंधी कोर्स करके आर्किटेक्ट के रूप में भी खुद को स्थापित
कर सकते हैं।
सेरामिक इंजीनियरिंग
ग्लास,
टेबलवेयर और फाइबर ऑप्टिक्स के विभिन्न उत्पादों की निर्माण प्रक्रिया से
लेकर विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादन में सेरामिक इंजीनयरिंग बेहद
मददगार है। देश के अलावा सेरामिक प्रोफेशनल्स विदेशों में भी भरपूर मौके
पाते है।
नैनो टेक्नोलॉजी (Nano Technology): इंजीनियरिंग
की किसी भी ब्रांच में बीई/बीटेक या एमएससी करने के बाद एमटेक नैनो
टेक्नोलॉजी में दाखिला लिया जा सकता है। इलेक्ट्रॉनिक्स, एनर्जी,
कॉस्मेटिक, फार्मास्यूटिकल्स, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, केमिकल, एनवॉयरमेंट,
सिक्योरिटी आदि विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर नैनो टेक्नोलॉजी की
जरूरत महसूस होने लगी है।
मैकेनिकल इंजीनियरिंग (Mechanical Engineering): मैकेनिकल
इंजीनियरिंग से बीटेक की डिग्री हासिल करने के बाद मशीन और टूल्स से
संबंधित क्षेत्रों में खुद को स्थापित किया जा सकता है। मशीनरी के अलावा
बाइक, कार और मोटर निर्माता कंपनियों में ऐसे प्रोफेशनल्स की मांग बनी रहती
है।
इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग
आज
के जमाने मे बिजली तो विकास का प्रतीक है। इससे संबंधित तकनीकी विशेषज्ञ
इलेक्ट्रिकल इंजीनियर कहलाते हैं। इलेक्ट्रिकल प्रोडक्ट्स निर्माता
कंपनियों के अलावा सरकारी विभागों में भी इनके लिए मौके उपलब्ध होते हैं।
जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic engineering): आनुवंशिक
गुणों का अध्ययन जेनेटिक इंजीनियरिंग के तहत किया जाता है। मेडिकल,
फार्मास्यूटिकल और एग्रीकल्चर क्षेत्रों में जेनेटिक इंजीनियर की मांग अधिक
होती है।
पेट्रोलियम इंजीनियरिंग (Petroleum Engineering): पेट्रोलियम
इंजीनियरिंग के तहत ड्रिलिंग टेक्नोलॉजी, ऑयल एक्सप्लोरेशन, जिओफिजिक्स
आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाती है। इंजीनियरिंग की इस शाखा का
संबंध कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के उत्खनन और उनके शुद्धिकरण के अलावा
पेट्रोल और गैस के वितरण से भी है।
केमिकल इंजीनियरिंग
विभिन्न
खनिज-पदार्थों की प्रोसेसिंग, बायोटेक्नोलॉजी, पेट्रोकेमिकल्स आदि के
अलावा विभिन्न रासायनिक उत्पादों और तकनीकों का अध्ययन इसके तहत किया जाता
है। केमिस्ट, इंडस्ट्रियल इंजीनियर, मैटेरियल इंजीनियर आदि के रूप में इन
प्रोफेशनल्स को विभिन्न संस्थानों में काम करने के अवसरमिलते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक्स/टेलीकम्युनिकेशन
टेलीकॉम
और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों के बीच की प्रतिस्पर्धा आज देखते ही बनती है।
इसके तहत इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, सॉफ्टवेयर डिजाइन, सिग्नल व इमेज
प्रोसेसिंग आदि के बारे में बताया जाता है। ट्रांसमिशन इंजीनियर,
नेटवर्किंग इंजीनियर आदि के रूप में ऐसे प्रोफेशनल की नियुक्ति होती है।
साउंड इंजीनियरिंग
फिल्म,
टीवी, रेडियो, मल्टीमीडिया आदि में साउंड इंजीनियरों को अवसर मिलते हैं।
इसके प्रोफेशनल्स विभिन्न उपकरणों का इस्तेमाल करके साउंड रिकॉर्डिंग,
मिक्सिंग, एडिटिंग आदि से संबंधित काम को पूरा करते हैं।
एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग (Agriculture Engineering): एग्रीकल्चर
इंजीनियरिंग से संबंधित प्रोफेशनल्स कृषि एवं इससे संबंधित विभिन्न
गतिविधियों, जैसे डेयरी, पॉल्ट्री, एनिमल हसबेंड्री, फिशरीज आदि आदि में
संलग्न होते हैं। कृषि से संबंधित उद्योग-धंधों में ऐसे इंजीनियरों की काफी
मांग होती है।
एनवॉयरमेंटल इंजीनियरिंग
पारिस्थिकी
संतुलन, औद्योगिक रसायनों के निस्तारण, वन्य जीव संरक्षण आदि विभिन्न
विषयों की जानकारी पर्यावरण इंजीनियरिंग के तहत दी जाती है। पर्यावरण की
सुरक्षा के मद्देनजर इंजीनियरिंग की इस शाखा का आज काफी महत्व है।
कंप्यूटर इंजीनियरिंग (Computer Engineering): कंप्यूटर
और आईटी इंजीनियर तो वक्त की मांग हैं। इसके तहत हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर,
दोनों में से किसी में भी कॅरियर की दिशा निर्धारित की सकती है। आनेवाले
समय में भी ऐसे इंजीनियरों की मांग बनी रहेगी।
एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग
एविएशन
से संबंधित एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की मांग तो सदैव बनी ही रहती है। इससे
संबंधित कोर्स के दौरान एयरक्राफ्ट, स्पेसक्राफ्ट, मिसाइल आदि की
डिजाइनिंग, टेस्टिंग, विकास, निर्माण और रखरखाव के बारे में जानकारी दी
जाती है।
ओशन इंजीनियरिंग (Olson Engineering) : इंजीनियरिंग
की इस शाखा का संबंध समुद्री वातावरण के अध्ययन से है। पढ़ाई के दौरान
इसमें सिविल, मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल विषयों के अलावा नेवल आर्किटेक्चर और
एप्लाइड ओशन साइंस जैसे विषयों की जानकारी भी दी जाती है। विभिन्न
संस्थानों में इससे संबंधित कोर्स उपलब्ध हैं।