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बेशक डर के आगे जीत है, मगर फिर भी लोग जीत के इस रास्ते से भटक जाते हैं। हर वक्त किसी न किसी बात को लेकर सताने वाला डर जेहन में इस कदर पसर जाता है कि जिंदगी अपने ही इर्द-गिर्द कैद हो जाती है। क्या आप नहीं चाहती इस कैद से आजाद होना। डर से आगे बढ़ना...
बदन में दर्द हो या सर्दी-जुकाम, शारीरिक रोग के लक्षण तुरंत दिखाई देते हैं और इसके निदान के लिए कई प्रकार की जांच भी उपलब्‍ध हैं। शरीर में हो रहे किसी भी बदलाव के बारे में शीघ्र ही इन परीक्षणों से पता कर लिया जाता है, लेकिन इस चंचल मन को समझना बहुत मुश्किल होता है। न कहीं कटने का निशान, न कहीं दर्द, मन भी नहीं समझ पाता कि उसे क्या हुआ है? यानी किसी भी तरह के मनोविकारों की पुष्टि न तो किसी रक्त जांच से की जा सकती है और न ही किसी अन्य लेबोरेटरी जांच से। उनका डायग्नोसिस पूरी तरह रोग के लक्षण, व्यवहार के आकलन और भावनात्मक संतुलन पर ही निर्भर है। मानसिक विकार, किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व, मनोदशा यानी मूड, चिंता, खाने की आदतों से संबंधित हो सकते हैं। हालांकि मानसिक रोग को लेकर लोगों के मन में आज भी कई गलत धारणाएं हैं। कुछ लोग इसे एक असाध्य, आनुवांशिक और छूत की बीमारी मानते हैं, तो कुछ लोग जादू-दोना या भूत-प्रेत का प्रकोप। आश्चर्य तो तब होता है, जब कुछ लोग इसे बीमारी न मानकर जिम्मेदारियों से बचने का ढोंग मात्र ही मानने लगते हैं, जो गलत है। सही धारणा यह है कि कोई भी मनोविकार एक बीमारी है, जिसका चिकित्सा जगत में बेहतर इलाज भी संभव है। बस जरूरत है इस बीमारी को लेकर जागरूक होने की।
बीमार तो नहीं मन?
यूं तो डर हर व्यक्ति को प्रभावित करता है, लेकिन महिलाओं में भय या डर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा देखने को मिलता है। व्यक्ति अपनी गलत एवं नकारात्मक सोच के कारण अक्सर डरा या भयभीत रहता है। इस तरह के काल्पनिक डर अगर समय रहते नियंत्रित न किए जाएं, तो ऐसी स्थिति में आगे चलकर एंग्जायटी न्यूरोसिस, एनोरेक्सिया नर्बोसा, अवसाद, पागलपन, ऑब्सेसिव कंपलसिव डिस्‍ऑर्डर (झक या सनक) नामक मानसिक रोग पैदा हो सकते हैं।
नजरअंदाज न करें
एंग्जायटी न्यूरोसिस (anxiety neurosis), डर की वह स्थिति होती है, जिसमें व्यक्ति अंदर से तनावग्रस्त एवं भय के साथ-साथ शारीरिक समस्याआंे के लक्षण जैसे
 
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