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बदलते दौर में मीडिया का क्षेत्र भी करियर के लिहाज से आकर्षक वेतन, प्रतिष्ठा, लोकप्रियता, रोमांच और ग्लैमर वाला हो गया है। अक्सर समझ लिया जाता है कि मीडिया मतलब अखबारनवीसी तथा टेलीविजन पत्रकारिता पर वास्तव में ऐसा है नहीं। मीडिया में प्रिंट जर्नलिज्म, टी.वी. जर्नलिज्म, फोटो जर्नलिज्म, एडवरटाइजिंग एवं पब्लिक रिलेशन जैसे ऑप्शन भी शामिल हैं।
प्रिंट जर्नलिज्म (Print Journalism)
किसी समय कहा जाता था कि पत्रकारिता सिखाई नहीं जा सकती। वह तो आपके अंदर से आती है। यूं तो यह बात आज भी सही है लेकिन अब प्रिंट जर्नलिज्म या अखबारनवीसी बाकायदा एक प्रोफेशन हो गया है। इसलिए यह जरूरी नहीं कि प्रिंट जर्नलिज्म में आने की इच्छा रखने वाले युवक-युवती का व्यक्तित्व जन्मजात पत्रकार जैसा हो। किसी अखबार या पत्रिका में काम करने के लिए आवश्यक डिग्री या डिप्लोमा देश के कई विश्वविद्यालय उपलब्ध कराते हैं। इन कोर्सों में प्रवेश पाने वाले युवक या युवती में ऐसा लेखन कौशल आवश्यक होता है जो आसान और बोधगम्य हो। इन कोर्सों में खबर को सूंघने या समझने का प्रशिक्षण दिया जाता है।
कई युवक-युवितयों की राइटिंग स्किल सरल और सहज नहीं होती । ऐसे में इस कमी को उक्त कोर्सों में पूरा किया जाता है। एक तरह से वहां राइटिंग स्किल को पॉलिश किया जाता है। जब भावी पत्रकारों को डिप्लोमा या डिग्री मिल जाती है तो कई विश्वविद्यालयों में उनका केम्पस सिलेक्शन होता है। इसी के साथ कई बड़े समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएं समय-समय पर अपने यहां प्रशिक्षु पत्रकार नियुक्त करने के लिए लिखित और मौखिक परीक्षाएं आयोजित करते हैं। इन परीक्षाओं को पास करने के बाद एक-एक साल का प्रशिक्षण दिया जाता है। इस प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षु पत्रकारों को अखबारनवीसी के लगभग हर क्षेत्र का प्रशिक्षण दिया जाता है। कुछ साल पहले तक समाचार पत्रों में वेतनमान आकर्षक नहीं थे, मगर अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। कई अखबारों के संपादकों के मासिक वेतन लाखों रुपए में हो गए हैं और एक उपसंपादक को शुरुआत में ही 20 से 25 हजार रुपये महीने की नौकरी मिल जाती है। देश में समाचार-पत्रों में काम करने का प्रशिक्षण देने वाले कुछ प्रतिष्ठित केंद्रों के नाम हैं-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन (भारतीय जनसंचार संस्थान) नई दिल्ली, भारतीय विद्या भवन, मुंबई तथा माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता संस्थान, भोपाल।
टेलीविजन जर्नलिज्म (television Journalism)
जब से टेलीविजन पर विभिन्न समाचार चैनल शुरू हुए हैं, तब से खबरों की दुनिया ही बदल गई है। कई क्षेत्रों में यहां तक माना जाने लगा है कि यदि समाचार चैनल नहीं होते तो कई महत्वपूर्ण खबरें लाइव अंदाज में लोगों तक नहीं पहुंचती। टी.वी. पत्रकारिता में पैसा भी है, प्रतिष्ठा भी है एवं ग्लैमर भी है। यदि आप टी.वी. पत्रकारिता में जाना चाहते हैं तो सबसे पहले आपमें खबर की समझ होनी जरूरी है। इसके बाद आता है 
यदि आप में बातचीत करने की कला है व नए-नए लोगों से मिलने में रुचि है, तो पीआर एक बेहतर करियर विकल्प हो सकता है।
आपका व्यक्तित्व जो टी.वी. के स्क्रिन पर खबर प्रस्तुत करने के लायक हो। आपकी आवाज का साफ-सुथरा होना भी आवश्यक है। जो लोग किसी समाचार चैनल के मैदानी पत्रकार के रूप में काम करना चाहते हैं उनमें उक्त बातों के अलावा खतरे उठाने का साहस होना जरूरी है। यहां खतरे एवं साहस शब्दों का इस्तेमाल इसलिए किया गया है कि विख्यात टी.वी. पत्रकार प्रबल प्रताप सिंह ने अमेरिका-इराक युद्ध और बरखा दत्त ने कारगिल युद्ध की खबरें मौके पर जाकर दर्शकों तक लाइव पहुंचाई थीं। ऐसा करके उक्त दोनों पत्रकार अपनी जान पर खेल गए थे। ऐसे ही चर्चित टी.वी. पत्रकारों के रूप में राजदीप सरदेसाई, दीपक चौरसिया, रजत शर्मा और सुमीत अवस्थी के नाम लिए जा सकते हैं। टी.वी. पत्रकारिता की वजह से ही स्टिंग ऑपरेशन का प्रचलन शुरू हुआ। स्टिंग ऑपरेशन के मार्फत कई भंडाफोड़ किए गए। कुछ संस्थानों ने टी.वी. पत्रकारिता के कोर्स प्रारंभ कर दिए हैं। प्रिंट जर्नलिज्म के लोग भी टी.वी. पत्रकारिता में आ गए हैं। इसके लिए शुरुआत लोकल स्तर पर किसी टी.वी. चैनल से करनी चाहिए। छोेटे चैनलों में काम करने का अनुभव आपको बड़े चैनलों में काम करने के मौकों की उपलब्धता को बढ़ा सकता है।
फोटो जर्नलिज्म (Photo Journalism)
एक अच्छी फोटो भी िबना कुछ कहे बहुत कुछ कह देती है। कई समाचार पत्रों में फोटो जर्नलिस्ट भी होते हैं। ये पत्रकार खबरों की तस्वीर तो खींचते ही हैं, साथ में न्यूज भी कवर करते हैं। इसलिए फोटो जर्नलिस्ट में दो स्किल्स का होना जरूरी है। एक तो न्यूज फोटो लेने की स्किल तथा दूसरी खबर को सही रूप में कवर करने की समझ। वैसे भी कहा जाता है कि एक फोटो हजार शब्दों की बात बयान कर देता है। ऐसे में यदि संबंधित फोटो जर्नलिस्ट खबर भी कवर कर ले तो वह खबर ज्यादा पुष्ट एवं विश्वसनीय हो जाती है। फोटो जर्नलिस्ट को नाम तो मिलता ही है, उसे अच्छा वेतन भी दिया जाता है। देश में कुछ संस्थान हैं जो फोटो जर्नलिज्म की डिग्री या डिप्लोमा देते हैं।
एडवरटाइजिंग(Advertising)
ऐसे कई युवक-युवतियां हैं जो एडवरटाइजिंग के जरिये मीडिया के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। वैसे यह धारणा भी प्रचलन में है कि एडवरटाइजिंग मीडिया का हिस्सा नहीं है मगर यह सही नहीं है। उलटे कहा तो यहां तक जाता है कि मीडिया और एडवरटाइजिंग एक-दूसरे के पूरक हैं। समाचार-पत्रों एवं टी.वी. चैनलों में एडवरटाइजिंग का स्वतंत्र विभाग होता है जिसमें अच्छी नौकरियों के अवसर उपलब्ध रहते हैं। एडवरटाइजिंग के काम का प्रशिक्षण देने के कोर्से विभिन्न संस्थानों द्वारा चलाए जाते हैं।
पब्लिक रिलेशन (Public Relations)
किसी व्यक्ति, संस्थान आदि की छवि को लोगों के समक्ष सकारात्मक रूप में प्रस्तुत करना, पब्लिक रिलेशन के अंतर्गत आता है। यदि आपको बातचीत करने की कला आती है, अपनी बात दूसरों को कनविंस करना आता है तथा आपकी रुचि नए-नए लोगों से मिलते-जुलते रहने में है तो पीआर अच्छा ऑप्शन हो सकता है। पब्लिक रिलेशन में करियर बनाने की इच्छा रखने वाले युवक-युवतियों को एडवरटाइजिंग एजेंसी एवं कई दूसरी छोटी-बड़ी कंपनियों में मनपसंद नौकरी मिल सकती है। पब्लिक रिलेशन के कोर्स कई शिक्षण संस्थान चलाते हैं।
 
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