बच्चे रात में सोते हुए बिस्तर पर पेशाब कर देते
हैं यानी की बिस्तर गीला कर देते हैं। इस स्थिति को ईन्यूरेसिस या बैड
वैटिंग भी कहते हैं। व्यक्ति के मूत्राशय में स्फिंगटर होता है। जिसके
द्वारा पेशाब को एक हद तक मूत्राशय में रोका जाता है। बच्चों में स्फिंगटर
पर नियंत्रण एक आयु तक आ जाता है। जब बच्चा उस उम्र के बाद भी किसी कारणवश
पेशाब करने की स्थिति पर नियन्त्रण नहीं कर पाता है तो ऐसी स्थिति में
बच्चा बिस्तर गीला करता है। बच्चा अगर ऐसा कभी-कभी करता है। तब इस पर ध्यान
देने की ज़रूरत नहीं होती है। जब बच्चा जल्दी-जल्दी बिस्तर गीला करता है।
इस स्थिति को ईन्यूरेसिस कहतेे हैं। ईन्यूरेसिस प्राइमरी एवं सेकेन्डरी
होता है।
प्राइमरी ईन्यूरेसिस में स्फिंगटर
पर दिमाग के नियंत्रण में देरी हो जाती है। ऐसे बच्चे रात्रि में लगभग
रोजाना ही बिस्तर गीला करते हैं। ऐसा अक्सर उन बच्चों में होता है, जिनका
मानसिक विकास धीमा या कम होता है। सेकेन्डरी ईन्यूरेसिस में, बच्चे का
स्फिंगटर पर नियन्त्रण सामान्य आयु में हो जाता है एवं कई महीनों तक बच्चा
बिस्तर गीला नहीं करता है लेकिन कुछ महीनों के बाद बच्चा फिर से बिस्तर
गीला करने लगता है। ऐसा अक्सर उन बच्चों में देखने को मिलता है, जो
भावनात्मक रूप से परेशान हो या बच्चे एवं माता-पिता में तालमेल की कमी हो।
ईन्यूरेसिस ऐसे बच्चों में भी देखने को मिलता है। जो बच्चे बचपन में कहीं न
कहीं मन में माता-पिता से अपनी ओर ध्यान चाहते हैं। इसके अलावा जिन बच्चों
के दिमाग या मन में माता-पिता के प्रति गुस्सा या विरोध होता है, वेे
बच्चे भी ऐसा करते हैं। अतः ईन्यूरेसिस का मनोवैज्ञानिक कारण भी है।
ईन्यूरेसिस वाले बच्चे आमतौर पर रात्रि में बहुत गहरी नींद में सोते हैं।
ऐसे बच्चों को उठाना मुश्किल होता है। भरे हुए मूत्राशय से मूत्राशय को
खाली करने की ज़रूरत वाले संकेत नींद में मस्तिष्क के जागरूक स्तर तक नहीं
पहुँच पाते हैं। जिसके कारण मूत्राशय अनैछिक रूप से (जिसमें बच्चे को नींद
में पता नहीं होता है) खाली हो जाता है। कभी-कभी कुछ बीमारियों जैसे
जुवेनाइल डायबिटिज मेलाइटस (बचपन का मधुमेह), पेशाब के तंत्र की कमियाँ,
गुर्दे की बीमारी एवं नसों की बीमारी के कारण भी ईन्यूरेसिस देखने को मिलता
है।
जुवेनाइल डायबिटिज मेलाइटस, पेशाब के
तन्त्र की कमियाँ, गुर्दे की बीमारी एवं नसों की बीमारी के कारणों का बच्चे
को देखकर एवं जाँच कर पता कर लेना चाहिए। बच्चा अगर इनमें से किसी बीमारी
से पीड़ित है तो ऐसी स्थिति में उसका उपचार कराना चाहिए। अगर इनमें से कोई
बीमारी नहीं है तब स्थिति आमतौर पर नुकसानरहित एवं स्वयं नियन्त्रित होने
वाली होती है। लगभग 95 प्रतिशत बच्चे पाँच से दस वर्ष की आयु के बीच अक्सर
बिस्तर गीला करते हैं। लगभग एक प्रतिशत सामान्य बच्चे भी लगभग 15 वर्ष की
आयु तक बिस्तर गीला करते हैं। हर सम्भव कोशिश करनी चाहिए कि बच्चे पर इसका
कम से कम भावनात्मक असर पड़ने पाये। सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम का ज्यादा
एक्टिव होना, जो भावनात्मक रूप से दिक्कत होने एवं डर के कारण होता है,
रात्रि में बिस्तर गीला करने को बढ़ा देता है। रात्रि में बिस्तर गीला करने
पर बच्चे को डाँटना या उसे चिढ़ाना नहीं चाहिए। बिस्तर की चादर चुपचाप बच्चे
को बिना बताये बदल देनी चाहिए। बच्चे को शाम चार, पाँच बजे के बाद पेय
पदार्थ जैसे चाय, दूध या शरबत आदि नहीं देना चाहिए। बच्चे को बिस्तर पर
सोने जाने से पहले पेशाब करने की आदत डालनी चाहिए। बच्चे को सोने के दो,
तीन घन्टे बाद उठाकर अपने आप बिना मदद पेशाब करने के लिए भेजना चाहिए।
ज़रूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह लें।