Menu

माइक्रोलर्निग में छोटे-छोटे कंटेंट का प्रयोग कर छात्रों को शिक्षा दी जाती है। माइक्रोलर्निग में कोर्स के पूरे विषय को छोटे-छोटे हिस्सों में बांट दिया जाता है। इसमें या तो विडियो या ऑडियो या टेक्स्ट या इन्फोग्राफिक्स होते हैं। विडियो या ऑडियो सेशन की अवधि 5-10 मिनट होती है। इसे रिच मीडिया फॉर्मेट में डिजाइन किया जाता है। यह लर्नर बेस्ड अप्रोच होती है, जो कई डिवाइसेज पर उपलब्ध होती है...
micro learning concpet courses hindi

क्या ऐसे भी छात्र या सीखने वाले स्टूडेंट्स होते हैं, जो पढ़ाई से बोर हो जाते हैं या पढ़ाई में जिसका मन नहीं लगता या जो अपना कोर्स पूरा नहीं कर पाते या जिन्हें सवालों का जवाब मालूम नहीं होता या जो कॉन्सेप्ट को समझ नहीं पाते। छात्रों की पढ़ाई उस समय प्रभावित होती है, जब स्टूडेंट्स पढ़ाई से बोर हो जाते हैं, किसी चीज में उनकी दिलचस्पी नहीं रहती और पढ़ाई से वो उदासीन हो जाते हैं। यह देखा जाता है कि पढ़ाई में व्यस्त रहने वाले छात्र खुश होते हैं, रचनात्मक होते हैं और ज्यादा प्रतिबद्ध होते है। इसके अलावा छात्रों को मन लगाकर सीखने वाले व्यक्तियों में बदलने के लिए माइक्रोलर्निग समाधान है। माइक्रोलर्निग छात्रों को पढ़ाने और उन्हें सूक्ष्म रूप में, मगर काफी ठोस कंटेंट मुहैया कराने का तरीका है। इससे छात्रों को यह पता रहता है कि वह कब
और क्या सीख रहे हैं। इस नजरिये में थोड़े समय के लिए बनाई गई रणनीति शामिल होती है, जो कौशल आधारित सीखने की प्रक्रिया या शिक्षा के लिए विशेष रूप से डिजाइन की जाती है। आमतौर पर माइक्रोलर्निग प्रक्रिया कुछ सेकंड से 15 मिनट या उससे ज्यादा देर तक चलती है। इसके अलावा यह लर्निग अप्रोच ज्यादा सस्ती है, तत्काल लागू हो जाती है। इसे एक अलग एसेट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है या  एक मल्टीपल माइक्रोकोर्स के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है हालांकि यह काफी छोटी प्रयोग करती है, जिससे छात्रों का ध्यान आकर्षित होती है, लेकिन इसे खासतौर से एक शैक्षिक उद्देश्य पूर्ति के लिए डिजाइन किया जाता है।

माइक्रोलर्निग में छोटे-छोटे कंटेंट का प्रयोग कर छात्रों को शिक्षा दी जाती है। माइक्रोलर्निग में कोर्स के पूरे विषय को छोटे-छोटे हिस्सों में बांट दिया जाता है। इसमें या तो विडियो या ऑडियो या टेक्सट या इंफोग्राफिक्स होते हैं। विडियो या ऑडियो सेशन की | अवधि 5-10 मिनट होती है। इसे रिच मीडिया फॉर्मेट में डिजाइन किया जाता है। यह लर्नर बेस्ड | अप्रोच होती है, जो कई डिवाइसेज पर उपलब्ध होती है। (डेस्कटॉप और लैपटॉप के अतिरिक्त इसका विस्तार टैबलेट और स्मार्टफोन पर भी होता है।) यह सभी पहलू सुनिश्चित करते हैं कि इन तक आसानी से पहुंच बनाई जा सके, जल्द से जल्द इसे पूरा किया जा सके और सीखने वाले या छात्र इसे लागू कर सके। माइक्रोलर्निंग छात्रों और सीखने वालों को लाभ  पहुंचाती है क्योंकि इससे नतीजों में सुधार आता है।

बेहतर ढंग से जुड़ाव
माइक्रोलर्निग के इस्तेमाल से छात्र कंटेंट से बेहतर तरीके से जुड़ सकते है। इसमें छात्रों को कोई विषय समझाने के लिए छोटी-छोटी क्विज का उपयोग किया जाता है। हर सब टॉपिक के बाद सवालजवाब होते हैं। इससे छात्रों को कॉन्सेप्ट को समझने में मदद मिलती है और समझ में न आई चीज को | समझने में मदद मिलती है।
कंटेंट ज्यादा समय तक रहता है
याद माइक्रोलर्निग इंफोग्राफिक फ्लैशचार्ट, बाइट की
साइज के एनिमेटेड विडियो. दिलचस्प थ्योरी और छात्रों को पढ़ाई से जोड़ने वाले दिलचस्प कंटेंट का प्रयोग करती है, जिससे छात्रों का ध्यान आकर्षित होता है और वह बेहतर ढंग से किसी विषय को याद रख पाते हैं।

कंटेंट को अपडेट करना है
आसान माइक्रोलर्निग बेस्ड ई-लर्निग सिस्टम में विषय को छोटे-छोटे उप विषयों में बांटा जाता है, जिससे कंटेंट को अपडेट करने में मदद मिलती है। किसी उप विषय में अपडेट करने से दूसरे विषयों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इससे कंटेंट को अपडेट करने में समय और प्रयास की भी बचत होती है।

एकल उद्देश्य हेतु विविधता पूर्ण ढंग से सीखना
माइक्रोलर्निग में इन्फोग्राफिक्स, आकर्षक थ्योरी, बाइट की साइज के एनिमेटेड विडियो जैसे विविध तरह की विषय वस्तु का इस्तेमाल किया जाता है। इससे अध्यापन प्रभावपूर्ण बनता है क्योंकि अलगअलग कांटेंट को एकल उद्देश्य पर फोकस रखते हुए डिजाइन किया जाता है।

समय का उचित इस्तेमाल
माइक्रोलर्निग सीखने की प्रक्रिया को 5 से 15 मिनट की छोटी-छोटी अवधि में विभाजित कर देती है, जिससे छात्र को अपने सीमित समय के सदुपयोग में मदद मिलती है। बढ़ी हुई क्षमता माइक्रोलर्निग सिलेबस और विषयों को छोटे-छोटे उप विषयों में विभाजित करने के लिए डिजाइन किया जाता है। स्टडी के छोटे-छोटे टाइम इंटरवल सीखने की क्षमता को बढ़ाते हैं। इससे सिखाने के नतीजे में अपने आप सुधार होते हैं। तेज और क्रमबद्ध पहुंच स्टडी मटीरियल तक पहुंच क्रमबद्ध ढंग से होने के कारण बहुत आसान होती है। माइक्रोलर्निग टेक्नोलॉजी में सिलेबस विषयों और उप विषयों में विभाजित किया जाता है, जिसमें डाउट्स, रिवीजन और बुक मार्क जैसे बटन होते हैं, जिससे विषयों तक तेज पहुंच हासिल होती है। व्यक्तिगत रूप से सिखाने पर ज्यादा जोर अध्ययन के माइक्रोलर्निग पैटर्न में व्यक्तिगत तौर पर सिखाने पर ज्यादा जोर दिया जाता है। क्योंकि इस टेक्नोलॉजी में हर क्लिक और टिक को रेकॉर्ड किया जाता है। व्यक्ति विशेष पर फोकस करने की प्रवृत्ति से छात्रों को विषयों को समझने और अच्छी तरह से उसे याद रखने में मदद मिलती है। इससे छात्रों को कोई भी विषय अच्छी तरह से समझ में आता है। हमने यह भी देखा कि किसी भी विषय में लोगों का ध्यान लगाने की क्षमता गोल्डफिश से कम होती है। 2015 की माइक्रोसॉफ्ट की स्टडी के अनुसार गोल्डफिश किसी चीज में 9 सेकंड तक दिलचस्पी ले सकती है, जबकि लोग किसी विषय में 8 सेकंड तक दिलचस्पी लेते हैं। 2000 में किसी विषय में दिलचस्पी लोग 12 सेकंड तक लेते थे। अब यह क्षमता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। माइक्रोलर्निग को 5 मिनट से ज्यादा तक प्रभावी पाया गया है। इसमें टाइमफ्रेम के साथ 500 से कम शब्दों का इंटरेक्शन और असेसमेंट होता है। अगर सीखने वाले व्यक्ति को कुछ करने के लिए कहा जाता है, तो वह उसमें अपना ध्यान लगाता है और अटेंशन क्लॉक री-सेट होती है। माइक्रोलर्निंग सीखने वाले की जरूरतों को पूरा करती है। उसे प्रेरित करती है और सीखने वाले के स्टाइल से ही उसे सिखाती है।

0 comments:

Post a Comment

 
Top